तेरे भीतर मेरे भीतर
स्वर्ण कलश छिपा है सुंदर
तेरे भीतर मेरे भीतर,
गहरा-गहरा खोदें मिलकर
तेरे भीतर मेरे भीतर !
दिन भर इधर-उधर हम खटते
नींद में उसी शरण में जाते,
शक्तिपुंज वह सुख का सागर
फिर ताजे हो वापस आते !
होश जगे यदि उसको पाएँ
यह प्यास भी वही जगाए,
सुना बहुत है उसके बारे
वह ही अपनी लगन लगाये !
इस मन में हैं छिद्र हजारों
झोली भर-भर वह देता है,
श्वासें जो भीतर चलती हैं
उससे हैं यह दिल कहता है !
अग्नि के इस महापुन्ज में
देवशक्तियां छुपी हैं कण-कण,
बर्फीली चट्टानों में भी
मिट्टी के कण-कण में जीवन !
जो भी कलुष कटुता भर ली थी
उसके नाम की धारा धो दे,
जो अभाव भी भीतर काटे
अनुपम धन भर उसको खो दें !
स्वर्ण कलश छिपा है सुंदर
जवाब देंहटाएंतेरे भीतर मेरे भीतर,
गहरा-गहरा खोदें मिलकर
तेरे भीतर मेरे भीतर !
bahut sunder bhav ..
सुभानाल्लाह...........बेहतरीन......शानदार पोस्ट|
जवाब देंहटाएंअग्नि के इस महापुन्ज में
जवाब देंहटाएंदेवशक्तियां छुपी हैं कण-कण,
बर्फीली चट्टानों में भी
मिट्टी के कण-कण में जीवन
वाह बहुत खूब लिखा है आपने ....
bhavpurn lekhni....aabhar
जवाब देंहटाएंवाह अनीता जी जितनी तारीफ़ की जाये कम है…………बेहतरीन्।
जवाब देंहटाएंसुन्दर भावपूर्ण रचना.....
जवाब देंहटाएंशानदार पोस्ट....lajwab
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी रचना।
जवाब देंहटाएंसुन्दर सन्देश देती अच्छी रचना
जवाब देंहटाएंअनुपमा जी, अना जी, संगीता जी, इमरान जी, मनोज जी, सुषमा जी, वन्दना जी, अंजू जी, और पल्लवी जी आप सभी का बहुत बहुत आभार!
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