नन्हा रजकण सृष्टि समेटे
बाशिंदा जो जिस दुनिया का
गीत वहीं के ही गायेगा,
अम्बर में उड़ने वाला खग
गह्वर में क्या रह पायेगा !
उस अनंत स्रष्टा का वैभव
देख-देख झुक जाता अंतर,
जाने कितने रूप धरे हैं
तृप्त नहीं होता रच-रच कर !
स्वयं तो शांत सदा एकरस
कोटि-कोटि ब्रह्मांड रचाए,
भीतर भर दी चाह अनोखी
देख-देख भी उर न अघाये !
रंगों की ऐसी बरसातें
खुशबू के फव्वारे छोड़े,
रसमय उस प्रियतम ने देखो
छेड़ दिये हैं राग व तोड़े !
कुछ भी यहाँ व्यर्थ न दीखे
नन्हा रजकण सृष्टि समेटे,
तृण का इक लघु पादप देखो
सुख अपनी गरिमा में लपेटे !
रसमय उस प्रियतम ने देखो
जवाब देंहटाएंछेड़ दिये हैं राग व तोड़े !
sunder rag aur tode bhi ...
shubhkamnayen
बेहतरीन।
जवाब देंहटाएंसादर
बहुत बहुत आभार ||
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति ||
कुछ भी यहाँ व्यर्थ न दीखे ||
सही कहा …………अजब तेरी कारीगरी करतार्…………रसमय बनाया तूने ह्रदयतार
जवाब देंहटाएंउस अनंत स्रष्टा का वैभव
जवाब देंहटाएंदेख-देख झुक जाता अंतर,
जाने कितने रूप धरे हैं
तृप्त नहीं होता रच-रच कर !
...बहुत भक्तिमयी अभिव्यक्ति...उसकी कारीगरी अनंत और अद्भुत है..
बहुत कुछ कहती है आपकी रचना.....
जवाब देंहटाएंआपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल आज 01-12 - 2011 को यहाँ भी है
जवाब देंहटाएं...नयी पुरानी हलचल में आज .उड़ मेरे संग कल्पनाओं के दायरे में
सुंदर अति सुंदर
जवाब देंहटाएंलयबद्धता किसी को भी आकर्षित कर सकती है
मज़ा आया पढ़कर
क्या बात है
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
अनुपमा जी, रविकर जी, वन्दना जी,सुषमा जी, महेंद्र जी, कैलाश जी, नवीन जी,यशवंत जी आप सभी का बहुत बहुत आभार !
जवाब देंहटाएंस्वयं तो शांत सदा एकरस
जवाब देंहटाएंकोटि-कोटि ब्रह्मांड रचाए,
भीतर भर दी चाह अनोखी
देख-देख भी उर न अघाये !
रंगों की ऐसी बरसातें
खुशबू के फव्वारे छोड़े,
रसमय उस प्रियतम ने देखो
छेड़ दिये हैं राग व तोड़े !
....
अरे दी !..मन कर रहा है नाच उठूँ सच में आप को नमन...कह नहीं पाउँगा कितना डूबा दिया आपने !
आनंद जी, नाचने की बात पर, आप आज की पोस्ट पढ़ें और खूब नाचें...
जवाब देंहटाएंउस अनंत स्रष्टा का वैभव
जवाब देंहटाएंदेख-देख झुक जाता अंतर,
जाने कितने रूप धरे हैं
तृप्त नहीं होता रच-रच कर !
स्वयं तो शांत सदा एकरस
कोटि-कोटि ब्रह्मांड रचाए,
भीतर भर दी चाह अनोखी
देख-देख भी उर न अघाये
"शब्द तुम्हारे गीत हमारे,कैसे कोई गा सकता है !
नाच उठे ये जग सारा यूँ,भाव कोई बिखरा सकता है...!!"
बस नि:शब्द हूँ............
वाह बहुत सुंदर पंक्तियाँ !
जवाब देंहटाएंबेहतरीन और बेजोड़ रचना !
आह कितना सुन्दर गीत...
जवाब देंहटाएंअद्भुत..
जवाब देंहटाएंकुछ भी यहाँ व्यर्थ न दीखे
जवाब देंहटाएंनन्हा रजकण सृष्टि समेटे,
तृण का इक लघु पादप देखो
सुख अपनी गरिमा में लपेटे !
गहन आध्यात्मिक रंग में रची बसी रचना है अनीता जी ! बहुत आनंद मिला आज इस रचना को पढ़ कर ! बधाई एवं आभार !
वाह वाह....
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर आनंदप्रद गीत...
सादर
sach kaha...zarra zarra srishti ka dhyotak hai.
जवाब देंहटाएं.
जवाब देंहटाएंआदरणीया अनिता जी
सादर प्रणाम !
इतना सुंदर गीत ! मन भीग गया -
उस अनंत स्रष्टा का वैभव
देख-देख झुक जाता अंतर,
जाने कितने रूप धरे हैं
तृप्त नहीं होता रच-रच कर !
स्वयं तो शांत सदा एकरस
कोटि-कोटि ब्रह्मांड रचाए,
भीतर भर दी चाह अनोखी
देख-देख भी उर न अघाये !
रंगों की ऐसी बरसातें
खुशबू के फव्वारे छोड़े,
रसमय उस प्रियतम ने देखो
छेड़ दिये हैं राग व तोड़े !
वास्तव में हम कितना भी श्रेष्ठ लिखें … परम आनंदानुभूति परमात्मा की आराधना में शब्द-पुष्प समर्पित करने में ही होती है…
नमन ! वंदन ! उस अनंत स्रष्टा को ! … और आपकी लेखनी को ! आपको !!
आभार और मंगलकामनाओं सहित…
- राजेन्द्र स्वर्णकार
उस अनंत स्रष्टा का वैभव
जवाब देंहटाएंदेख-देख झुक जाता अंतर,
जाने कितने रूप धरे हैं
तृप्त नहीं होता रच-रच कर
bahut bhaw purn rachna aabhar
ममता जी, राजेन्द्र जी, अनामिका जी, संजय जी, साधना जी, अमृता जी, शिखा जी, संतोष जी व पूनम जी आप सभी का हृदय से आभार!
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