ऐसे ही वह हमें सहेजे
पीछे-पीछे आता है वह
परम सनेहे हर पल भेजे,
मोती जैसे जड़ा स्वर्ण में
ऐसे ही वह हमें सहेजे !
घेरे हुए है चहूँ ओर से
माँ के हाथों के घेरे सा,
गुंजन मधुर सुनाता हर पल
मंडराए ज्यों मुग्ध भ्रमर सा !
गहन शांति व मौन अनूठा
भर जाता भीतर जब आये,
जन्मों की साध हो पूरी
ऐसा कुछ संदेश दे जाये !
ज्योति का आवरण ओढ़ाता
एक तपिश अनोखी प्रीत,
सब कुछ जैसे बदल गया हो
बदला हो प्रांगण व भीत !
भान समय का भी खो जाता
नहीं कोई वह रहे अकेला,
अपनी मस्ती में बस खोया
एक हुए नीरव या मेला !
gahan bhaavon ko darshati rachna.bahut sundar.
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना ...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना ...
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर पोस्ट|
जवाब देंहटाएंएक हुए नीरव या मेला .अच्च्छी प्रस्तुति .बधाई .
जवाब देंहटाएंराजेश जी, वन्दना जी, रजनीश जी, इमरान जी, वीरुभाई जी व संगीता जी, आपसभी का आभार व स्वागत !
जवाब देंहटाएंक्षमा कीजिये व्यस्तता वश पहले नहीं पढ़ पाई ...आपकी रचनाएँ ह्रदय आह्लादित करतीं हैं ....!!
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना ....
शुभकामनायें....
अनोखी प्रीत का भान कराती हुई अनोखी रचना के लिए बधाई..
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