देखते ही देखते
देखते ही देखते उम्र सारी ढल गयी
जिंदगी की डोर यूँ हाथ से फिसल गयी
कुछ कहाँ हो सका आह बस निकल गयी
क्रांति की हर योजना बार-बार टल गयी
हर किसी मोड़ पर कमी कोई खल गयी
दर्द आग बन उठा श्वास हर पिघल गयी
जो दिखा छली बली चाल जिसकी चल गयी
भ्रमित हो गया जगत दाल उसकी गल गयी
मर के भी वह न मरा मौत भी विफल गयी
रूह जिन्दा रहे यह बात सच निकल गयी
हर किसी मोड़ पर कमी कोई खल गयी
जवाब देंहटाएंदर्द आग बन उठा श्वास हर पिघल गयी
gahan bhav ...
हर किसी मोड़ पर कमी कोई खल गयी
जवाब देंहटाएंदर्द आग बन उठा श्वास हर पिघल गयी...waah
बहुत ही सुन्दर... कुछ अलग सी रचना...
जवाब देंहटाएंवाह वाह अनीता जी..
जवाब देंहटाएंमर के भी वह न मरा मौत भी विफल गयी
रूह जिन्दा रहे यह बात सच निकल गयी
बहुत खूब............
देखते ही देखते उम्र सारी ढल गयी
जवाब देंहटाएंजिंदगी की डोर यूँ हाथ से फिसल गयी
कुछ कहाँ हो सका आह बस निकल गयी
क्रांति की हर योजना बार-बार टल गयी
सत्य कहती सुन्दर रचना।
देखते ही देखते उम्र सारी ढल गयी
जवाब देंहटाएंजिंदगी की डोर यूँ हाथ से फिसल गयी
कुछ कहाँ हो सका आह बस निकल गयी
क्रांति की हर योजना बार-बार टल गयी
बहुत खुबसूरत शेर हैं......वाह |
सच ही कहा है लोगों ने समय से सब कर ही लेना चाहिए! और कुछ नहीं तो प्रभु भक्ति ही सही ... वरना कहना पड़ेगा
जवाब देंहटाएंदेखते ही देखते उम्र सारी ढल गयी
जिंदगी की डोर यूँ हाथ से फिसल गयी
अनुपमा जी, रश्मि जी, वन्दना जी इमरान, विद्या जी, व संजय जी, आप सभी का स्वागत व आभार!
जवाब देंहटाएंसुन्दर एवं सशक्त अभिव्यक्ति .
जवाब देंहटाएंदेखते ही देखते उम्र सारी ढल गयी
जवाब देंहटाएंजिंदगी की डोर यूँ हाथ से फिसल गयी !
जो दिखा छली बली चाल जिसकी चल गयी
भ्रमित हो गया जगत दाल उसकी गल गयी !
सही कहा आपने....
बड़ी देर से पता चल पाता है कुछ बातों का...
तब तक जिन्दगी कई मोड़ ले चुकी होती है...!!
आपकी लेखनी और भावनाओं की नि:शब्द करती अभिव्यक्ति को नमन .
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