लड़कियों की प्रार्थना
अच्छा घर हो अच्छा वर हो
बड़ी नौकरी न कोई डर हो,
इतना तो सब माँगा करतीं
‘स्वयं’ कैसी हों नहीं सोचतीं !
बाहर सब हो कितना अच्छा
भीतर के बल पर ही टिकता,
भीतर को यदि नहीं संवारा
बाहर का भी शीघ्र बिखरता !
जो होना है वह हो जाये
सहज हुआ मन दीप जलाये,
फेरे, वेदी, मंगल वाणी
जीवन को आगे ले जाये !
लम्बा रस्ता, दूर है मंजिल
अपनी राह स्वयं गढनी है,
कैसा मधुर खेल चलता है
एक पहेली हल करनी है !
खूब-सूरत प्रस्तुति |
जवाब देंहटाएंबहुत-बहुत बधाई ||
अनीता जी आपने बहुत अच्छे और सटीक विषय पर लिखा है..........बहुत ही अच्छी अहि कविता......हैट्स ऑफ इसके लिए|
जवाब देंहटाएंअच्छा घर हो अच्छा वर हो
जवाब देंहटाएंबड़ी नौकरी न कोई डर हो,
इतना तो सब माँगा करतीं
‘स्वयं’ कैसी हों नहीं सोचतीं !
इस पर अब कोई नहीं सोचता ...अजीब सा माहौल है, अजीब सी चाह है
बाहर सब हो कितना अच्छा
जवाब देंहटाएंभीतर के बल पर ही टिकता,
भीतर को यदि नहीं संवारा
बाहर का भी शीघ्र बिखरता !
...बहुत सच कहा है...लेकिन आजकल ऐसा सोचता कौन है..आभार
बाहर सब हो कितना अच्छा
जवाब देंहटाएंभीतर के बल पर ही टिकता,
भीतर को यदि नहीं संवारा
बाहर का भी शीघ्र बिखरता !
बहुत सुंदर शिक्षा दे दी कविता के माध्यम से. आभार.
बहुत बहुत सुन्दर..
जवाब देंहटाएं