रविवार, फ़रवरी 26

देने वाला देता हर पल


देने वाला देता हर पल

मौन में ही संवाद घट रहा
दोनों ओर से प्रेम बंट रहा,
एक नशीली भाव दशा है
ज्यों चन्द्र से मेघ छंट रहा !

एक अचलता पर्वत जैसी
एक धवलता बादल जैसी,
कोई मद्धिम राग गूंजता
एक सरलता गाँव जैसी !

गूंज मौन की फैली नभ तक
खबर इश्क की पहुंची रब तक,
कैसे, कोई, कहाँ छिपाए
खुशबू डोली अंतरिक्ष तक !

एक अनल शीतल जलती है
एक आस भीतर पलती है,
यह पल यहीं ठहर ही जाये
कब ऐसी घड़ियाँ मिलती हैं !

देने वाला देता हर पल
टाला करते हम कह कल-कल
अहर्निश सभी सदा दौड़ते
कौन रुका है यहाँ एक पल !

9 टिप्‍पणियां:

  1. देने वाला देता हर पल
    टाला करते हम कह कल-कल
    अहर्निश सभी सदा दौड़ते
    कौन रुका है यहाँ एक पल !

    .....बिलकुल सच...बहुत सार्थक और सुंदर प्रस्तुति..आभार

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  2. बहुत सुन्दर..
    बढ़िया अभिव्यक्ति अनीता जी..

    सादर.

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  3. बेहद उम्दा रचना हकीकत बयाँ करती हुयी।

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  4. एक अनल शीतल जलती है
    एक आस भीतर पलती है,
    यह पल यहीं ठहर ही जाये
    कब ऐसी घड़ियाँ मिलती हैं ! ..

    nice..

    जवाब देंहटाएं
  5. उसके कर तो खुले सदा हैं
    सुन्दर रचना...
    सादर.

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  6. देने वाला देता हर पल
    टाला करते हम कह कल-कल
    अहर्निश सभी सदा दौड़ते
    कौन रुका है यहाँ एक पल !

    बहुत सुंदर भाव ... देने वाला तो सच ही सब कुछ देता है

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