हम जा कहाँ रहे हैं...
कांगो में हुआ भीषण विस्फोट
एक नन्हें बच्चे को दिया अमानवीय दंड
कांप जाता है समाचार पढ़ के मन
ईरान चाहता है बम बनाना
चीन सैन्य शक्ति को बढाना
कहाँ गयी है मानवी बुद्धि
और क्षमता विवेक की
किसके खिलाफ युद्ध छेड़ा है हमने
हम जा कहाँ रहे हैं...
टीवी का स्विच बंद कर देती हूँ
पलट देती हूँ अखबार को उल्टा
पर हत्या और हिंसा की घटनाएँ तो कम नहीं होतीं
पूर्व अधिकारी के यहाँ मिलते हैं करोडों
दूर के रिश्तेदारों के नाम जब फ़्लैट लिखा जाता है
तब ठंड में ठिठुर कर मर जाता है
कोई बच्चा, बेघर ठंडी सड़क पर
सर्दियों की रात में.....
जब सेना की साज-सज्जा में धन लुटाया जा रहा है
गरीब, बेरोजगार किसान आत्महत्या करने पर विवश हैं
क्यों है इतनी विषमता
इतना अन्याय
समझ नहीं पाता मन
किशोरों के हाथों तक पहुँच गये हैं हथियार
और गिलास जिसमें भरा है जहर नशे का
जो हाथ मंदिर की घंटियाँ बजाने को उठा करते थे
आज भटक गए हैं...
परिवर्तन की यह आंधी कहाँ ले जाएगी
हमें... हम जा कहाँ रहे हैं...
हर संवेदन शील मन की यह चिंता है
और बेबुनियाद तो नहीं है न यह चिंता..?
जो देख सुन रहें हैं...जो भुगत रहें हैं,उसके बाद फ़िक्र तो लाजमी है....
जवाब देंहटाएंबहुत सार्थक रचना अनीता जी..
सादर.
अनु जी, आपका आभार... अखबारों की खबरें दिल कंपाने वाली हैं, हममें से हरेक को अपने आसपास वातावरण शांतिपूर्ण बनाना है.
हटाएंहर संवेदन शील मन की यह चिंता है
जवाब देंहटाएंऔर बेबुनियाद तो नहीं है न यह चिंता..?
्बिल्कुल बेबुनियाद नही है …………
वन्दना जी, बहुत बहुत शुक्रिया !
हटाएंहर संवेदन शील मन की यह चिंता है
जवाब देंहटाएंऔर बेबुनियाद तो नहीं है न यह चिंता..?
सार्थक लेखन ...
अनुपमा जी, आपका स्वागत व आभार!
हटाएंशिखाजी, आभार, आपका हाकी प्रेम काबिले तारीफ है, बहुत बहुत बधाई !
जवाब देंहटाएंसचमुच चिंतित करती हैं वर्तमान की गतिविधियाँ....
जवाब देंहटाएंबेहद प्रभावी रचना....
सादर.
आपकी पोस्ट आज की ब्लोगर्स वीकली मीट (३४) में शामिल की गई है /आप आइये और अपने विचारों से हमें अवगत करिए /आप इसी तरह मेहनत और लगन से हिंदी की सेवा करते रहें यही कामना है /आभार /लिंक है
जवाब देंहटाएंhttp://hbfint.blogspot.in/2012/03/34-brain-food.html
एकदम ह्रदय की बात कह दिया है आपने..आह...
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