पिता
मिलते ही धर देते हैं
हाथ पर कुछ नोटों की सौगात
जैसे हो हमारी अमानत उनके पास
सौंप कर जिसे निश्चिन्त होना चाहते हों...
आठ दशकों से देखे होंगें
उतार-चढ़ाव न जाने कितने
पर आँखें नव शिशु सी स्वच्छ हैं..
झाड़ दिये हैं शायद उदास पंख
और उड़ते हैं बेपंख ही
भीतर के आकाश में...
माँ के बिना भी पूर्ण नजर आने लगे हैं पिता
माँ जैसे उनके भीतर समा गयी हैं
पिलाते अपने हाथों से बनाकर चाय
बिस्तर लगाते
सिखाते छोटी-छोटी बातें..
थमाते घर गृहस्थी की छोटी छोटी वस्तुएँ
पिता सजग हैं और संतुष्ट भी !
पिता का साया और उनका आशीर्वाद हमेशा यूँ ही बना रहे ।
जवाब देंहटाएंnice :)
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति ।।
जवाब देंहटाएंमां के ना होने पर दोहरी भूमिका निभाते हैं पिता.....
जवाब देंहटाएंसिर्फ अपने बच्चों की खातिर.....
बहुत सुंदर रचना अनीता जी.
पिता का अच्छा चित्र खींचा है आभार आपका !
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें आपको !
behad prabhavshali rachana ...badhai sweekaren
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर भावपूर्ण अभिव्यक्ति...आभार
जवाब देंहटाएंपिता को इस एंगिल से शायद ही किसी ने कविता में देखा हो। आप सदैव नए विचारों को लेकर आती हैं।
जवाब देंहटाएंधन्य हैं ऐसे पिता और किस्मत वाले हैं वे जिनके सिर पर इनका साया है... भावपूर्ण रचना के लिए आभार आपका
जवाब देंहटाएंपिता भी पूरी ज़िम्मेदारी उठाते हैं ... सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंअनूठे शब्द और अद्भुत भाव से सजी इस रचना के लिए बधाई स्वीकारें...
जवाब देंहटाएंनीरज
कल 17/06/2012 को आपकी यह पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
जवाब देंहटाएंधन्यवाद!
मिलते ही धर देते हैं
जवाब देंहटाएंहाथ पर कुछ नोटों की सौगात
मगर पापा!
आज जब जीवन की,
हर छोटी-बड़ी बाधाओं को,
आपके 'वे लम्बे-लम्बे भाषण' हल कर देते है,
फादर्स डे की हार्दिक शुभकामनाएँ
जवाब देंहटाएंपिता दिवस की शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंसच. ज़रूरत पड़ने पर पिता माँ का फ़र्ज़ भी निभा सकते हैं
जवाब देंहटाएं