दृश्य नहीं वह द्रष्टा है
वह कैद नहीं है मंदिर में
दृश्य नहीं वह द्रष्टा है,
नाम-रूप में
बंध न सके
सृष्टि नहीं वह सृष्टा है !
झांक रहा इन नयनों से
श्रवणों से शब्द वही धारे,
कोमलतम स्पर्श उसी से हैं
उससे ही भाव उठे सारे !
वह बन विद्युत तन में दौड़े
मन-प्राण उसी के बल पर हैं,
वह सहज सदा रहता भीतर
दूरी न हमसे पल भर है !
उसमें विश्राम करे कोई
सँवर गया निज दर्पण में,
पल भर भी ध्यान धरे कोई
खो जाता दिल की धड़कन में !
ज्यों बालक माँ से विमुख हुआ
बस खेल खिलौनों से खेले,
जीवन की उथल-पुथल कैसी
वह देख रहा कुछ न बोले !
वह देखे ही जायेगा, गर
हम रुक कर उसको न चीन्हें
है धैर्य, बड़ी करुणा उसमें
निजता को तिल भर न छीने !
वाह
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर!!
मनभावन रचना अनीता जी...
सादर.
सत्य से साक्षात्कार कराती सुन्दर रचना, सरल और सुबोध शब्दों में. बधाई
जवाब देंहटाएंसत्य से साक्षात्कार कराती सुन्दर रचना, सरल और सुबोध शब्दों में.
जवाब देंहटाएंउसमें विश्राम करे कोई
जवाब देंहटाएंसँवर गया निज दर्पण में,
पल भर भी ध्यान धरे कोई
खो जाता दिल की धड़कन में !
्यही तो वास्तविक सत्य है …………सशक्त अभिव्यक्ति।
उसमें विश्राम करे कोई
जवाब देंहटाएंसँवर गया निज दर्पण में,
पल भर भी ध्यान धरे कोई
खो जाता दिल की धड़कन में
हाँ धीरे धीरे चलना सीख रहें है ।
वह कैद नहीं है मंदिर में
जवाब देंहटाएंदृश्य नहीं वह द्रष्टा है,
नाम-रूप में बंध न सके
सृष्टि नहीं वह सृष्टा है !
जीवन की सच्चाई बस इतनी ही है.....
और समझने में हम जिंदगी बिता देते हें.....!
बहुत सुंदर.....
अद्भुत...!!
अहा ! मन को सच में विश्राम मिलता है आपको पढ़कर..
जवाब देंहटाएंसृष्टि के कण-कण में उसका ही विराट रूप समाया हुआ है। हम सब उसके अंश मात्र हैं।
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