सोमवार, मई 21

अब सहज उड़ान भरेगा मन



अब सहज उड़ान भरेगा मन


अब वह भी याद नहीं आता
अब मस्ती को ही ओढ़ा है,
अब सहज उड़ान भरेगा मन
जब से इसने घर छोड़ा है !

वह घर जो बना था चाहों से
कुछ दर्दों से, कुछ आहों से,
अब नया-नया सा हर पल है
अब रस्तों को ही मोड़ा है !

हर क्षण मरना ही जीवन है
गिन ली दिल की हर धड़कन है,
पल में ही पाया है अनंत
अब हर बंधन को तोड़ा है !

अब कदमों में नव जोश भरा
अब स्वप्नों में भी होश भरा,
अंतर से अलस, प्रमाद झरा
अब मंजिल को मुख मोड़ा है !



9 टिप्‍पणियां:

  1. हर क्षण मरना ही जीवन है
    गिन ली दिल की हर धड़कन है,
    पल में ही पाया है अनंत
    अब हर बंधन को तोड़ा है !
    .....बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति.......

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  2. वह घर जो बना था चाहों से
    कुछ दर्दों से, कुछ आहों से,
    अब नया-नया सा हर पल है
    अब रस्तों को ही मोड़ा है !

    वाह...वाह....शानदार और लाजवाब लगी ये कविता बहुत ही सुन्दर।

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    1. इमरान, आपको कविता अच्छी लगी, शुक्रिया !

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  3. 'अब सहज उड़ान भरेगा मन'
    ...और इस सहजता से भरी उड़ान में कई आकाश साकार हो जायेंगे!
    सुन्दर कविता!

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    उत्तर
    1. अनुपमा जी, आपने बिल्कुल सही कहा, इस सहज उड़ान में बहुत कुछ मिल जाता है.

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  4. अंतर से जब अलस और प्रमाद झड़ जाता है, तो मन का बोझ हलका हो ही जाता है, फिर तो वह उनमुक्त गगन में उंची उड़ान भरने को तैयार हो जात है।

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  5. बहुत सुन्दर और प्रेरक भाव....आभार

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  6. अब सहज उड़ान भरेगा मन
    जब से हमने घर छोड़ा है !
    आपकी इन पंक्तियों को पढ़ कर गुलज़ार साहब का सूफी एल्बम "इश्का इश्का" का एक गीत याद आ गया जिसके बोल हैं " रौशनी ही रौशनी...रौशनी ही रौशनी...घर जला दिया है..."
    बधाई स्वीकारें

    नीरज

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