जीवन की आपाधापी सच
जब दुःख की वीणा छेड़ी थी
पीछे चल रहा जमाना था,
अब सुख का राग उठा जब से
सँग अपने अब वीरानी है !
दुःख ही बोये दुःख ही काटे
सुख की भाषा बेगानी सी,
जीवन की आपाधापी सच
‘उसकी’ न कोई निशानी है !
जब बरस रहा सुख का बादल
दुःख की छतरी को ओढ़े हैं,
जब सारा आलम है अपना
तिनके जोड़ें क्यों ठानी है !
कुछ मन को ही सब कुछ मानें
कुछ देह सजाने में शामिल,
कुछ रोग मिलें, कुछ कुंठाएं
क्या व्यर्थ नहीं यह रवानी है !
कोई मांग रहे भिक्षा सुख की
रिश्तों की सांकल खटकाए,
जो ‘स्वयं’ की प्यास बना घूमे
नयनों से बहता पानी है !
जो नहीं है अपने पास यहाँ
आशा औरों से करते क्यों,
अपने दामन में छिद्र हुए
दोहराई वही कहानी है !
जो नहीं है अपने पास यहाँ
जवाब देंहटाएंआशा औरों से करते क्यों,
अपने दामन में छिद्र हुए
दोहराई वही कहानी है ! ............बहुत सुन्दर भाव..सुन्दर अभिव्यक्ति..
कुछ मन को ही सब कुछ मानें
जवाब देंहटाएंकुछ देह सजाने में शामिल,
कुछ रोग मिलें, कुछ कुंठाएं
क्या व्यर्थ नहीं यह रवानी है !
गहन यतार्थ समेटे ये पोस्ट लाजवाब है ।
जब बरस रहा सुख का बादल
जवाब देंहटाएंदुःख की छतरी को ओढ़े हैं,
जब सारा आलम है अपना
तिनके जोड़ें क्यों ठानी है !
पूरी रचना ही गहन बात को अभिव्यक्त करते हुये .... बहुत सुंदर प्रस्तुति
कोई मांग रहे भिक्षा सुख की
जवाब देंहटाएंरिश्तों की सांकल खटकाए,
जो ‘स्वयं’ की प्यास बना घूमे
नयनों से बहता पानी है !…………सुन्दर अभिव्यक्ति।
सुन्दर कविता!
जवाब देंहटाएंगहन तथ्यों को खूब लिखा है!
कोई मांग रहे भिक्षा सुख की
जवाब देंहटाएंरिश्तों की सांकल खटकाए,
जो ‘स्वयं’ की प्यास बना घूमे
नयनों से बहता पानी है !
वाह...
बहुत सुंदर अनीता जी..
सादर.
अनीता जी,बहुत सुन्दर और बेहतरीन रचना है।बधाई स्वीकारें।
जवाब देंहटाएंवाह जी
जवाब देंहटाएंमाहेश्वरी जी, इमरान, संगीता जी, वन्दना जी, काजलजी, बाली जी, अनु जी व अनुपमा जी आप सभी का बहुत बहुत स्वागत तथा आभार !
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