सोमवार, मई 28

अब जो भी बाधा है पथ में


अब जो भी बाधा है पथ में

 
तुमको ही तुमसे मिलना है
खुला हुआ है मन उपवन,
जब जी चाहे चरण धरो तुम
सदा गूंजती है धुन अर्चन !

न अधैर्य से कँपतीं श्वासें
शुभ्र गगन से छाओ भीतर,
दिनकर की रश्मि बन छूओ
कुसुमों की या खुशबू बनकर !

कभी न तुमको बिसराया है
जगते-सोते याद तुम्हारी,
उठती-गिरती पलक में झलके
मेघों में ज्यों द्युति चमकारी !

जाने कब वह घड़ी मिलेगी
कब ढ़ुलकोगे अमृत घट से,
टूटेंगी कब सीमाएं सब
प्रकटोगे श्यामल झुरमुट से !

अब जो भी बाधा है पथ में
वह भी दूर तुम्हें करनी है
सौंप दिया जब शून्य, शून्य में
तुम्हें कालिमा भी हरनी है ! 

8 टिप्‍पणियां:

  1. वाह अनीता जी............
    जाने कब वह घड़ी मिलेगी
    कब ढ़ुलकोगे अमृत घट से,
    टूटेंगी कब सीमाएं सब
    प्रकटोगे श्यामल झुरमुट से !

    बहुत सुंदर....

    सादर.

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  2. बहुत सुन्दर भक्तिमयी प्रस्तुति....आभार

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  3. सौंप दिया जब शून्य, शून्य में
    तुम्हें कालिमा भी हरनी है !

    बहुत सुंदर भाव ...
    स्वयम तक स्वयम को ही पहुंचना है ...

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  4. अब जो भी बाधा है पथ में
    वह भी दूर तुम्हें करनी है
    सौंप दिया जब शून्य, शून्य में
    तुम्हें कालिमा भी हरनी है !

    बहुत ही सुन्दर और बेहतरीन पंक्तियाँ।

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  5. सौंप दिया जब शून्य, शून्य में....बहुत सुंदर पंक्तियाँ..

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