भाई
अखबार में आने वाली,
हर पहेली हल करते
उतार चश्मा, नजदीक लाकर,
महीन अक्षर पढ़ते.... बड़े भाई
अब भी बचपन को सहेजे हैं...
पाँचवें दशक के अंत तक
पहुँचे
देख कर लगता है उन्हें,
अब भी पढ़ते होंगे
कभी-कभी बाल कथाएँ,
प्यार भरी झिड़कियां सुनते
किशोर बेटी की, हँसकर,
भाभी की किटी और कीर्तन को
झेलते
कर्मठ, समर्पित अधिकारी विभाग के,
बड़े भाई जीवन को शिद्दत से
जीते हैं...
अर्ध रात्रि,
एक बड़ा शहर, भीड़ भरा स्टेशन
कार लेकर आया है मंझला भाई,
सामान भारी है..आँखें
उनींदी..
घर दुमंजिले पर,
गाड़ी में ही छोड़ सामान
सोने चले जाते हैं हम,
अलसुबह अकेले ही ले आता है
चुपचाप वह सारा सामान...
सुबह की पहली चाय बनाकर पिलाता...
घर व गाड़ी झाड़ता, संगीत बजाता,
और आर्मी कैंटीन में
घंटो पंक्ति में खड़े होकर,
दिलाता है मनपसंद सामान...
कार्य व परिवार को पूर्णतया समर्पित
भाई, मंद मंद मुस्काता
है....
ट्रेन रूकती है रात के दो बजे,
वह बारह बजे से आकर बैठा था
कहीं आँख न लग जाये,
और ट्रेन आ जाये...
सवा तीन बजे हम उतरते हैं,
तो चहकता हुआ
वह करता है
स्वागत
मानों अभी-अभी सोकर उठा हो तरोताजा..
प्रेम का जादू ही तो है यह,
जो रखता है सचेत
नींद और जागरण में एक सा,
सामान उठाकर रखता है गाड़ी
में
और घर में ठहराता है स्नेह से,
दफ्तर से आते वक्त लाता है
फल, मिठाई
इसरार कर खिलाता है,
ओशो के सन्यासी
छोटे भाई का मन नहीं भरता..
बहुत सुंदर........
जवाब देंहटाएंईश्वर की दया से ऐसे ही भाई हमने भी पाए हैं...
:-)
बहुत प्यारी रचना अनीता जी....
अनु
अनु जी, आपको व आपके भाइयों को शुभकामनायें...आभार!
हटाएंबहुत सुन्दर भावभीनी अभिव्यक्ति....आभार
जवाब देंहटाएंकैलाश जी, स्वागत है आपका !
हटाएंबहुत बेहतरीन भावपूर्ण रचना।
जवाब देंहटाएंबाली जी, आभार!
हटाएंवाह भाई वाह!
जवाब देंहटाएंअनुराग जी, छोटी सी टिप्पणी में सब कह दिया आपने !
हटाएंभावपूरित रचना।
जवाब देंहटाएंभाभियों के बाद भाइयों पर ये पोस्ट शानदार लगी :-)
जवाब देंहटाएंवाकई बहुत सुंदर।
जवाब देंहटाएंउत्तम अभिव्यक्ति ..
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