खाली मन का कोरा पन्ना
खाली है मन बिल्कुल खाली
सर-सर जिसमें हवा गुजरती,
कभी अनल बन लपट सुलगती
नहर विमल सलिल की बहती !
मधुर गूंजता कलरव जिसमें
कभी पिघलते मधुरिम सपने,
झरे कभी पराग सुमनों से
स्वप्निल बहे फाग वृक्षों से !
रक्तिम आभा कभी झलकती
शीतल पावन अगन धधकती,
जल जाएँ इक-इक कर रोड़े
सुगम सुनहरी राह उभरती !
बरस-बरस नीले अम्बर से
मेघ तृषा बुझाते भू की,
बूंद-बूंद में लाते अमृत
बादल प्यास मिटाते जी की !
सहज प्रफ्फुलित रेशा-रेशा
खिली-खिली सी धरा सुहानी,
गहराई में तपन छुपी है
उसे सम्भाले शीतल पानी !
खाली मन का कोरा पन्ना
जिस रंग में चाहे रंग डालो,
केसरिया बन जले मशाल
एक क्रांति की लहर उठा दो !
खाली मन का कोरा पन्ना
जवाब देंहटाएंजिस रंग में चाहे रंग डालो,
केसरिया बन जले मशाल
एक क्रांति की लहर उठा दो !………………बहुत खूबसूरत भाव समन्वय्।
कोरे पन्ने पर आपने सभी रंग भर दिये।..वाह!
जवाब देंहटाएंसहज प्रफ्फुलित रेशा-रेशा
जवाब देंहटाएंखिली-खिली सी धरा सुहानी,
प्रफुल्लित कर रहा है आपका उत्कृष्ट काव्य....!!
वाह...
जवाब देंहटाएंबरस-बरस नीले अम्बर से
मेघ तृषा बुझाते भू की,
बूंद-बूंद में लाते अमृत
बादल प्यास मिटाते जी की !
बहुत सुन्दर अनीता जी.
अनु
उल्लास और उमंग से भरे सुन्दर भाव...सादर
जवाब देंहटाएंबरस-बरस नीले अम्बर से
जवाब देंहटाएंमेघ तृषा बुझाते भू की,
बूंद-बूंद में लाते अमृत
बादल प्यास मिटाते जी की !...बहुत सुन्दर भाव ..अनीताजी बधाई..
वन्दना जी, अनुपमा जी, देवेन्द्र जी, अनु जी, संध्या जी, व माहेश्वरी जी, आप सभी का आभार !
जवाब देंहटाएंखाली मन.....काश हमारा भी हो जाये.....बहुत सुन्दर ।
जवाब देंहटाएंइमरान, जरा ढूढें मन को.... कहाँ गया ? वह है ही नहीं....यही तो खाली होना है...इसी पल
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उम्दा प्रस्तुति के लिए आभार
प्रवरसेन की नगरी प्रवरपुर की कथा
♥ आपके ब्लॉग़ की चर्चा ब्लॉग4वार्ता पर ! ♥
♥ पहली फ़ूहार और रुकी हुई जिंदगी" ♥
♥शुभकामनाएं♥
ब्लॉ.ललित शर्मा
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क्रांति की लहर तो आपकी लेखनी से निकल ही रही है...
जवाब देंहटाएंबरस-बरस नीले अम्बर से
जवाब देंहटाएंमेघ तृषा बुझाते भू की,
बूंद-बूंद में लाते अमृत
बादल प्यास मिटाते जी की !
खूबसूरत.....
बड़े दिनों बाद आना हुआ .....माफ़ी चाहूंगी...!!