एक बातचीत
न आये थे अपनी मर्जी से
न ही जायेंगे...
तू ही लाया..ले भी जाना जब चाहे
हम न आड़े आएँगे
तेरी हवा से धौंकनी चलती है
श्वासों की
तेरी गिजा से देह..
मिला मौका सजदा करने का
तेरी जमीं पर
गुनगुनाने का
तेरे आसमां तले
क्या हम काबिल थे इसके..
तेरी जन्नत को दोजख बनाने के सिवा
क्या आता है हमें...
तेरी रहमत को देखकर भी
सिवा आँखें चुराने के
क्या किया है हमने
तेरी मुहब्बत की परवाह न करें
तुझसे बस शिकवा किया करें
(तेरे बन्दों से शिकवा तुझसे ही हुआ न )
ओ खुदा...बस यही एक बात है
जब तब आ जाता है
तेरा नाम जुबां पर
तेरा ख्याल जहन में
और वही पल होता है
जब सुकून मिलता है
भीतर तेरी याद कौंध जाती है
तू अपना है तभी न अपना सा लगता है
जगत यह दिखता हुआ भी सपना लगता है
छिपा है तू सात पर्दों के पीछे
फिर भी झलक दिख जाती है
झाँकू जब किसी बच्चे की आँखों में
तेरी ही सूरत नजर जाती है...
झाँकू जब किसी बच्चे की आँखों में
जवाब देंहटाएंतेरी ही सूरत नजर जाती है...
bahut sundar ...!!
कल 27/07/2012 को आपकी यह बेहतरीन पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
जवाब देंहटाएंधन्यवाद!
sarthak prastuti aabhar. प्रणव देश के १४ वें राष्ट्रपति :कृपया सही आकलन करें
जवाब देंहटाएंअनुपमा जी, यशवंत जी व शालिनी जी आप सभी का स्वागत व बहुत बहुत आभार !
जवाब देंहटाएंशाश्वत की सुंदर अभिव्यक्ति.... वाह!
जवाब देंहटाएंसादर।
खुबसूरत बंदगी के अल्फाज़।
जवाब देंहटाएंअनीता जी ,आपके ब्लॉग पर देरी से आने के लिए पहले तो क्षमा चाहता हूँ. कुछ ऐसी व्यस्तताएं रहीं के मुझे ब्लॉग जगत से दूर रहना पड़ा...अब इस हर्जाने की भरपाई आपकी सभी पुरानी रचनाएँ पढ़ कर करूँगा....कमेन्ट भले सब पर न कर पाऊं लेकिन पढूंगा जरूर
जवाब देंहटाएंतेरी जन्नत को दोजख बनाने के सिवा
क्या आता है हमें...
तेरी रहमत को देखकर भी
सिवा आँखें चुराने के
क्या किया है हमने
वाह...बहुत सुन्दर रचना है आपकी...बधाई
नीरज
सुकून मिलता है आपको पढ़कर .
जवाब देंहटाएं