प्रेम पूर्णता की तलाश है
जब मैं, तुम में खो जाती है
तब जो शेष रहता है
वही प्रेम है
मैं और तुम अधूरे हैं पृथक-पृथक
तलाश है हमें पूर्णता की
अनंत काल से हैं आतुर एक होने को
पर कुछ न कुछ आ ही जाता है मध्य में
कभी अहंकार, कभी संसार
चलो गिरा दें सारी दीवारें
मिटा दें सारे भेद
एक बार तो पूर्णता के चरम क्षण को करें महसूस
तुम एक थे अनेक हुए
संसार बसाया
पर चैन न पाया
उन बिछुड़े हुओं से मिलने का ख्याल
बार-बार तुम्हें धरा पर लाया
लुभाने को तुमने लाखों सरंजाम किये
पर भीतर-भीतर खुद तक जाने के भी
सारे इंतजाम किये
दो के बीच तीसरे की जगह कहाँ है
प्रेम की यह गली इतनी संकरी जो है
अब जो भी मिलन होगा वह अंतिम मिलन होगा
पूर्णता तक ही बढ़ेगा हमारा हर कदम...
अब जो भी मिलन होगा वह अंतिम मिलन होगा
जवाब देंहटाएंपूर्णता तक ही बढ़ेगा हमारा हर कदम...
वाह! सुन्दर प्रस्तुति.
पूर्णता की ओर कदम बढाती हुई.
वाह वाह कितना सार्थक चित्रण किया है प्रेम और पूर्णता का
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर अनीता जी.
जवाब देंहटाएंअनु
बहुत सुन्दर आध्यात्मिक चिंतन प्रेम से पूर्णता तक बहुत बधाई
जवाब देंहटाएंप्रेम के रस में डूबी सुन्दर अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंराकेश जी, अनु जी, रविकर जी, पूनम जी, राजेश जी, इमरान व वन्दना जी आप सभी का स्वागत व आभार !
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