कैसी थी वह दूरी
तुमसे दूरी क्या हुई
गाज़ हम पे गिर गयी
जाने किस बेसुध क्षण में
आग दिल में लग गयी
वह तो अच्छा हुआ जाना
घर तुम्हारा करीब था
दरवाजा भी खुला था
खुश अपना नसीब था
गर नहाये न होते
तुम्हारी याद की बारिश में
सुलगते
रहते तुम्हारे दर तक
यह भी क्या संयोग था
भूले थे छाता घर पर
आपकी किसी पुरानी बेहतरीन प्रविष्टि की चर्चा मंगलवार २८/८/१२ को चर्चाकारा राजेश कुमारी द्वारा चर्चामंच पर की जायेगी मंगल वार को चर्चा मंच पर जरूर आइयेगा |धन्यवाद
जवाब देंहटाएंवाह वाह अनीता जी कुछ अलग से रंग में......बारिश कि मस्ती में....खूबसूरत।
जवाब देंहटाएंबिल्कुल अलग अंदाज़ ....पर सुरूर वही ...
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत रचना ...!!
शुभकामनायें अनीता जी ....
:)
जवाब देंहटाएंबहुत खूब ...
BAHUT KHOOB ANITA JI.NICE PRESENTATION.संघ भाजपा -मुस्लिम हितैषी :विचित्र किन्तु सत्य
जवाब देंहटाएंNICE .संघ भाजपा -मुस्लिम हितैषी :विचित्र किन्तु सत्य
जवाब देंहटाएंलीक से कुछ अलग हटके अलग प्रयोग किए हैं गर नहाए न होते तुम्हारे प्यार की बारिश में ....वाह ! .कृपया यहाँ भी पधारें -
जवाब देंहटाएंसोमवार, 27 अगस्त 2012
अतिशय रीढ़ वक्रता (Scoliosis) का भी समाधान है काइरोप्रेक्टिक चिकित्सा प्रणाली में
http://veerubhai1947.blogspot.com/
तुम्हारी याद की बारिश में
जवाब देंहटाएंसुलगते रहते तुम्हारे दर तक
यह भी क्या संयोग था
भूले थे छाता घर पर।
वाह! क्या बात है, बहुत सुंदर।
इमरान, शालिनी जी, वीरू भाई, निलेश जी, सतीश जी आप सभी का स्वागत व आभार!
जवाब देंहटाएंआहा! वाह जी वाह..
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