सोमवार, अगस्त 6

तब आता है बसंत


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तब आता है बसंत में मौसम और प्रेम एक दूसरे पर किस तरह आश्रित हैं, इसका परिचय मिलता है. प्रकृति में होते बदलाव जहाँ एक ओर ऋतु परिवर्तन का संदेश देते हैं, वहीं प्रिय से मिलने की प्रेरणा भी बन जाते हैं

सरसों सा बिखर जाता है
दिनकर का रंग
गूंजता है
दोपहर के सूने में
कोयल का स्वर पचंम
तब आता है बसंत

...

धूल में मिश्रत सा लगता है
जब इन्द्रधनुष के अबीर का सँग
तब आता है बसंत
....
कहता है मौसम
खत्-खत् नहीं..
होता है जब प्रत्यक्ष ही आमन्त्रण
तब आता है बसंत

....
जब लौटकर नहीं आते
प्रेषित प्रेम-पत्र बैरंग
तब आता है बसंत

अंतिम दो कवितायें कवि की उस अनवरत तलाश को बयान करती हैं, जो उसे निरंतर बेचैन किये है

एक निराकार, एक आकार सचित्र

सिर्फ तुम्हारी तस्वीरों तक ही
मैं कैसे रह सकता हूँ सीमित
तुम्हें तलाशते हुए
भटक रहा हूँ
जंगल जंगल, पर्वत पर्वत
रोक लेता है मुझे पर
यह क्षितिज
....
..
कभी कभी तो लगता है
मैं ही आइना हूँ
मैं ही हूँ बिम्ब और प्रतिबिम्ब
...
तुम्हारे स्पर्श से जान सकूं कि
हृदय की भावनाएँ सच्ची होती हैं
नहीं होती हैं अज्ञात दर्द से भरी हुई
मात्र टीस
सत्य के दोनों होते हैं रूप
एक निराकार, एक आकार सचित्र

मैं हूँ निर्दोष

मैं हूँ निर्दोष
यह तो इस मौसम का है दोष
इसलिए तुम्हें मेरी निगाहें रही हैं खोज
....
प्यास बुझी नहीं
कह रही कलियाँ
पीकर शबनम की बूंदें अनमोल
धूप कह रही
बादलों के बिना कितना
अकेला लग रहा है
यह नीलाम्बर
....
इंतजार में ही है आनंद
सुंदरता के पग में बंधी  
घुंघुरुओं का स्वर कर रहा
मुझे आत्मविभोर
...
..
किशोर कुमार जी कि कविताओं को पढ़ते हुए कभी-कभी मुझे गीतांजली की स्मृति हो आयी, हम सबके भीतर एक अमूर्त प्रेम सदा जागृत रहता है उस अनाम अस्तित्त्व के नाम...उसी की याद दिलाती हैं ये कवितायें आशा है आप सभी सुधी पाठक भी इनका रसास्वादन करेंगे. 

6 टिप्‍पणियां:

  1. अनीता जी बहुत बढ़िया..आभार

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  2. बहुत सुन्दर प्रस्तुति.
    किशोर कुमार जी की कविताओं को शेयर
    करने के लिए धन्यवाद.

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  3. माहेश्वरी जी,मनोज जी, व राकेश जी आप सभी का स्वागत व आभार!

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  4. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...आभार

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  5. सुन्दर परिचय करवाया है किशोर जी से .आभार..

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