जीवन दो का है खेल सदा
खिलते काँटों संग पुष्प यहाँ
है धूप जहाँ होगी छाया,
हत्यारा गर तो संत भी है
है ब्रह्म जहाँ होगी माया !
हो तिमिर सघन, घनघोर घटा
रवि किरणें कहीं संवरती हैं,
जो आज चुनौती बन आयी
कल बदली बनी बरसती है !
जीवन दो का है खेल सदा
हर क्षण में दूजा मरण छिपा,
इक श्वास जो भीतर भर जाती
बाहर जाती ले रही विदा !
जो पार हुआ तकता दो को
वह खेल समझता है जग का,
इस ऊंच-नीच के झूले से
वह कूद उतरता खा झटका !
है शुभ के भीतर छिपा अशुभ
शत्रु बन जाते मित्र घने,
न स्वीकारा जिसने सच यह
विपदा के बादल रहे तने !
सुख की जो बेल उगाई थी
कटु फल दुःख के लगते उस पर,
जीवन में छिपा मरण पल-पल
मन करता गर्व यहाँ किस पर !
सुख की जो बेल उगाई थी
जवाब देंहटाएंकटु फल दुःख के लगते उस पर,
जीवन में छिपा मरण पल-पल
मन करता गर्व यहाँ किस पर !
बहुत सुन्दर दार्शनिक भाव
latest postमेरी और उनकी बातें
कालीपद जी, स्वागत व आभार !
हटाएंबहुत ही सुन्दर रचना ... जितना सारगर्भित सन्देश, उतने ही सुन्दर शब्दों से पिरोया हुआ भी। कभी कभी ही ऐसी रचनाएँ पढने को मिलती हैं।
जवाब देंहटाएंसादर
मधुरेश
मधुरेश जी, शुक्रिया..
हटाएंबढ़िया रचना | आभार
जवाब देंहटाएंTamasha-E-Zindagi
Tamashaezindagi FB Page
जीवन दो का है खेल सदा
जवाब देंहटाएंहर क्षण में दूजा मरण छिपा,
इक श्वास जो भीतर भर जाती
बाहर जाती ले रही विदा !...........बहुत ही भावपूर्ण रचना .........
संध्या जी, स्वागत व आभार !
हटाएंबहुत खूबसूरत कविता
जवाब देंहटाएंवन्दना जी, आभार!
हटाएंराजेश जी, बहुत बहुत आभार !
जवाब देंहटाएंये खेल समझ में आता तो है पर भूल कर खेलने में न जाने कैसा रस मिलता है..
जवाब देंहटाएंअमृता जी, एक बार इस खेल के जो पार हो जाता है उसको मिलने वाले रस का कहना ही क्या..
हटाएं
जवाब देंहटाएंबहुत गजब बहुत अच्छी रचना
ये कैसी मोहब्बत है
खुशबू
है शुभ के भीतर छिपा अशुभ
जवाब देंहटाएंशत्रु बन जाते मित्र घने,
न स्वीकारा जिसने सच यह
विपदा के बादल रहे तने ..
सच कहा है .. जो इस दो के खेल को समझ जाता है भवसागर पार होना आसान हो जाता है ...
सुख और दुःख , जीवन और मृत्यु.......सदा विपरीत हैं यहाँ...........अद्भुत कविता.......
जवाब देंहटाएंसुख की जो बेल उगाई थी
जवाब देंहटाएंकटु फल दुःख के लगते उस पर,
जीवन में छिपा मरण पल-पल
मन करता गर्व यहाँ किस पर !
बेहद खूबसूरत रचना ...
बधाई आपको !
सुख की जो बेल उगाई थी
जवाब देंहटाएंकटु फल दुःख के लगते उस पर,
जीवन में छिपा मरण पल-पल
मन करता गर्व यहाँ किस पर !
...बहुत सार्थक और प्रभावी अभिव्यक्ति...आभार
दिनेश जी, सतीश जी, दिगम्बर जी, कैलाश जी व इमरान आप सभी का स्वागत व आभार !
जवाब देंहटाएं