उसी घड़ी में कुछ घट जाता
वक्त का दरिया बहता जाता
यूँ लगता कुछ कहता जाता !
कल का सूरज कहाँ खो गया
आयेगा जो किधर से आये,
अभी “अभी” था अभी हुआ मृत
किसी अतल में गुमता जाता !
दूर सितारों से गर देखें
धरा गेंद सी डोल रही है,
एक आवरण में लिपटी सी
भेद किसी के खोल रही है !
सब कुछ पल में थिर हो जैसे
समय की रेखायें मिट जाये,
एक सनातन सृष्टि मिलती
क्षण भर को गतियाँ थम जाएँ !
उसी घड़ी में कुछ घट जाता
वक्त का दरिया रुक मुस्काता !
सब कुछ पल में थिर हो जैसे
जवाब देंहटाएंसमय की रेखायें मिट जाये,
एक सनातन सृष्टि मिलती
क्षण भर को गतियाँ थम जाएँ !
बस थमी ही रहें उसके बाद.....
बहुत सुन्दर...!
एक पल में क्या से क्या हो जाता है, जो पास है वह खो जाता है, जो पास नहीं वह मिल जाता है... गहन भाव
जवाब देंहटाएंअच्छा प्रयास | भावपूर्ण रचना |
जवाब देंहटाएंTamasha-E-Zindagi
Tamashaezindagi FB Page
बढ़िया गत्यात्मक गीत -वक्त का दरिया बहता जाता .
जवाब देंहटाएंअभी “अभी” था अभी हुआ मृत
जवाब देंहटाएंकिसी अतल में गुमता जाता !......... अद्भुत रचना... रसी का सुन्दर आवरण ओढ़े हुए .
गहन भाव लिए सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंवह तो कभी होने से रहे कि वक़्त का दरिया रुक जाए .. वह तो हर पल बहता जाता ...
जवाब देंहटाएंएक पल बदलता है सृष्टि .....बहुत सुन्दर।
जवाब देंहटाएंआप सभी का स्वागत व आभार !
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
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