ठिठक गयी कोयल की कूक
मुरझाई सी आम्र मंजरी
ठिठक गयी कोयल की कूक,
जाने कौन निगोड़ी आकर
गई कान में उसके फूँक !
कैसे घोलें रंग अनूठे
भीगा-भीगा सा मौसम है,
पिचकारी भी सहमी सी है
गुब्बारों पर बैन लगा है !
नफरत के कुछ रंग डालते
कुछ दहशत आतंक बांटते,
कुछ को दौलत रंगी लगती
ताकत, सत्ता, रक्त मांगते !
ऐसे में क्या होगा फाग
लगी हुई है द्वेष की आग,
शायद होली उसे बुझाये
सोये हैं जो जाएँ जाग !
सुन्दर भाव.
जवाब देंहटाएंआपकी यह बेहतरीन रचना बुधवार 20/03/2013 को http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जाएगी. कृपया अवलोकन करे एवं आपके सुझावों को अंकित करें, लिंक में आपका स्वागत है . धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंसुन्दर भाव....
जवाब देंहटाएंसमय रहते चेत गए तो अच्छा....
सादर
अनु
जी होली के रंग इस द्वेष और नफरत को धो डालें इसी आशा में ।
जवाब देंहटाएंनफरत के कुछ रंग डालते
जवाब देंहटाएंकुछ दहशत आतंक बांटते,
कुछ को दौलत रंगी लगती
ताकत, सत्ता, रक्त मांगते !बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति
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जवाब देंहटाएंबढ़िया रूपक आज के सन्दर्भ से जुड़ा ,नियम के नाम पर ही तो यहाँ सब हो रहा है सिरों की गिनती चुनाव में धांधली सब नियम हैं अपवाद नहीं .जेलों के तीर्थ तिहाड़ में नेताओं का पड़ाव सब नियम ही तो हैं .
अब तो इस तालाब का पानी बदल दो सब कमल के फूल मुरझाने लगे हैं ...
नफरत के कुछ रंग डालते
कुछ दहशत आतंक बांटते,
कुछ को दौलत रंगी लगती
ताकत, सत्ता, रक्त मांगते !
ऐसे में क्या होगा फाग
लगी हुई है द्वेष की आग,
शायद होली उसे बुझाये
सोये हैं जो जाएँ जाग !
जवाब देंहटाएंकोयल के मिस रचे गए रूपक तत्व का रचना में अंत तक निर्वाह हुआ है .बढ़िया रचना फाग पर ,लोकतंत्र के भाग पर .
बहुत सुन्दर भाव
जवाब देंहटाएंसमय रहते जागना तो होगा ही!
जवाब देंहटाएंबहुत सार्थक ,अनिता जी....
आपकी इस उत्कृष्ट पोस्ट की चर्चा बुधवार (20-03-13) के चर्चा मंच पर भी है | जरूर पधारें |
जवाब देंहटाएंसूचनार्थ |
द्वेष की आग बुझनी चाहिए ...सुंदर कविता
जवाब देंहटाएंअति सुन्दर! मेरी बधाई स्वीकार करें।
जवाब देंहटाएंनिहार जी, यशोदा जी, महेश्वरी जी, इमरान, प्रदीप जी, रजनीश जी, ब्रिजेश जी, अदिति जी, तथा कालीपद जी आप सभी का स्वागत व आभार ! होली की अग्रिम शुभकामनायें !
जवाब देंहटाएंऐसे में क्या होगा फाग
जवाब देंहटाएंलगी हुई है द्वेष की आग,
शायद होली उसे बुझाये
सोये हैं जो जाएँ जाग !
.....सच में अगर आज नहीं जागे तो शायद फिर समय न मिले..बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति..आभार
कैलाश जी, सही कहा है आपने..जागने का वक्त आ गया है, आभार!
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