एक बूंद मानव का देय
रंगों की बौछार हो रही
पल-पल इस सुंदर सृष्टि में,
लाखों-लाखों रंग छिपे हैं
नहीं समाते जो दृष्टि में !
सजा मंच है इक अनंत का
प्रकृति नटी दिखाती खेल,
जैसे कोई बाजीगर हो
क्षण-क्षण घटे तत्व का मेल !
अनल दमकता, रक्तिम लपटें
स्वर्णिम आभा, हँसीं दिशाएँ,
सतरंगी उर्मियाँ रवि की
कण-कण वसुधा का रंग जाएँ !
धरा गंध का कोष लुटाती
बहे सुवासित पवन पुष्प छू,
ध्वनियाँ कैसी मधुरिम गूंजें
खग कूजित मुखरित नभ भू !
है अनंत, अनंत का सब कुछ
एक बूंद मानव का देय,
उतना ही रिसता जब उससे
मिल जाता जीवन में श्रेय !
अनल दमकता, रक्तिम लपटें
जवाब देंहटाएंस्वर्णिम आभा, हँसीं दिशाएँ,
सतरंगी उर्मियाँ रवि की
कण-कण वसुधा का रंग जाएँ ! -बहुत सुन्दर भाव
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बहुत सुंदर अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंसटीक और सार्थक पोस्ट।
जवाब देंहटाएंवाकई बहुत ही सुन्दर रचना ... बड़े ही प्यारे शब्द बुने हैं आपने .. और तह में गूढ़ भी ...
जवाब देंहटाएंहोली की अग्रिम सादर शुभकामनाएं आपको !! :)
सजा मंच है इक अनंत का
जवाब देंहटाएंप्रकृति नटी दिखाती खेल,
जैसे कोई बाजीगर हो
क्षण-क्षण घटे तत्व का मेल ...
ये जीवक इस प्राकृति का खेल ही तो है ... जिसका रहस्य जानना आसान नहीं होता ...
जवाब देंहटाएंकल दिनांक25/03/2013 को आपकी यह पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपकी प्रतिक्रिया का स्वागत है .
धन्यवाद!
यशवंत जी, आभार!
हटाएंबहुत खूब
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर और सार्थक अभिव्यक्ति...होली की हार्दिक शुभकामनायें!
जवाब देंहटाएंकालीपद जी, संगीता जी, इमरान, अनु जी, कैलाश जी, दिगम्बर जी व मधुरेश जी आप सभी का स्वागत व आभार!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर ताना बाना शब्दों का ...भावों का ...सुवासित सी रचना ...
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