जैसे कोई दीप जला हो
प्रीत पुरानी युगों-युगों की
याद दिलाये उस बंधन की,
रास रचाया था जब मिलकर
छवि भर ली थी कमल नयन की !
फिर जाने क्यों हुआ विछोह
जकड़ गया था मन को मोह,
भुला ही दिया सुख स्वप्नों को
स्वयं से ही कर डाला द्रोह !
एक घना आवरण ओढ़े
जीवन था सुख से मुख मोड़े,
दिल को किसी तरह बहलाते
दूजों के कितने दिल तोड़े !
पीड़ा लेकिन क्यों कर भाती
बार-बार कुछ स्मरण दिलाती,
भूले हुए किसी सुदिन का
रह-रह नींद में स्वप्न दिखाती !
तब उसने संदेशा भेजा
सिर आँखों पर जिसे सहेजा,
किया कुबूल निमंत्रण उसका
जिसको युगों से न था देखा !
जैसे कोई दीप जला हो
बहुत पुराना मीत मिला हो,
ऐसे अपनाया है उसने
जैसे उत्पल कहीं खिला हो !
सुन्दर प्रस्तुति-
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें-
बहुत सुन्दर प्रस्तुति !
जवाब देंहटाएंLATEST POSTसपना और तुम
मंटू जी, रविकर जी व कालीपद जी सुस्वागत व आभार !
हटाएंजैसे कोई दीप जला हो
जवाब देंहटाएंबहुत पुराना मीत मिला हो,
ऐसे अपनाया है उसने
जैसे उत्पल कहीं खिला हो !
बहुत सुन्दर ,अप्रतिम ,रागात्मक रचना प्रकृति परमात्म प्रेम से संसिक्त .
वीरू भाई, बहुत बहुत शुक्रिया..
हटाएंबहुत सुन्दर..
जवाब देंहटाएंप्यारे शब्द बहुत सुन्दरता से रचे हुए.
जवाब देंहटाएंजैसे कोई दीप जला हो
जवाब देंहटाएंबहुत पुराना मीत मिला हो,
बहुत बहुत सुन्दर ।
निहार जी व इमरान, ऐसे ही आते रहिये इस पोस्ट पर...स्वागत है..
हटाएंमाहेश्वरी जी, व मानव जी, स्वागत व आभार !
जवाब देंहटाएंजैसे कोई दीप जला हो
जवाब देंहटाएंबहुत पुराना मीत मिला हो,
ऐसे अपनाया है उसने
जैसे उत्पल कहीं खिला हो !
अनुभूत की सशक्त गीतात्मक अभिव्यक्ति .
मन आनंद से भर गया।
जवाब देंहटाएंखिले उत्पल का सुवास मदमस्त कर रहा है..
जवाब देंहटाएंसुंदर शब्दों में नेक ख्याल.
जवाब देंहटाएंनवसंवत्सर की शुभकामनाएँ.
वीरू भाई, देवेन्द्र जी, अमृता जी व रचना जी आप सभी का स्वागत व आभार!
जवाब देंहटाएंदीप पर्व आपको सपरिवार शुभ हो !
जवाब देंहटाएंकल 03/11/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
धन्यवाद!
सुन्दर रचना
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