बहती अमृत धार रसीली
अनगिन, अविरत, झर-झर देखो
धाराएँ अम्बर से बरसें,
नद-नाले पोखर झीलों के
सूने घट भर जाएँ फिर से !
ताप ले गया जिसे चुराकर
पुनः भरे व नमी सजीली,
कण-कण सिंचित हो वसुधा का
बहती अमृत धार रसीली !
कैसा अद्भुत समां बंधा है
इक रव कोई गुंजा रहा है,
ताल बद्ध, इक लय है जिसमें
मानो अम्बर थिरक रहा है !
चकित हुए से पाखी ताकें
छिपे हुए पत्तों, कोटों से,
प्रकृति सबको पनाह दे रही
शिशु जैसे माँ के आंचल में !
अभी दिवस थोड़ा बाकी था
बदली से श्यामलता छाई,
पवन भी जल संग मस्त हुआ है
गुलमोहर डाली मुस्काई !
टपटप, छपछप, टिपटिप छमछम
जाने कितने स्वरों में गाये,
वर्षा भिगो गयी मानस को
पावस अंतर आस जगये !
सुन्दर वर्णन ।
जवाब देंहटाएंतरोताजा कर गई - शीतल पवन सी ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर भाव की सुन्दर अभिव्यक्ति !
जवाब देंहटाएंlatest post केदारनाथ में प्रलय (२)
वर्षा का उल्लास मुखर हो उठा !
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर वर्णन ।
जवाब देंहटाएंसुन्दर चित्र पावस का .मानवीकरण प्रकृति और उसके उपादानों का .शुक्रिया आपकी टिपण्णी का .
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर कविता....बिलकुल अमृत धार की तरह की मन को भिंगोती हुई.
जवाब देंहटाएंअद्भुत...
जवाब देंहटाएंबहुत खुबसूरत एहसास पिरोये है अपने......
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना और सुंदर अभिव्यक्ति .......!!
जवाब देंहटाएंइमरान, दयानन्द जी, कालीप्रसाद जी, माहेश्वरी जी, सुषमा जी, अमृता जी, रंजना जी, प्रतिभा जी, निहार जी, वीरू भाई आप सभी का स्वागत व आभार!
हटाएंकल 15/07/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
जवाब देंहटाएंधन्यवाद!
आभार यशवंत जी
हटाएंबहुत सुंदर सरस रचना ..
जवाब देंहटाएंआभार सतीश जी..
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