मन
मन जब चहकते पंछियों की तरह
मुंडेर पर बैठ जाता है
निरुद्देश्य..
बादलों के बनते बिगड़ते रूप
आँखों में भर जाते हैं
जाने कितने ख्वाब
सूरज की आखिरी किरन भी जैसे
चुपचाप कोई संदेश दे
ले रही हो विदा..
किसी सुरमई शाम को
पंखों की फड़फड़ाहट और बसंती
बयार
की मद्धिम सी आवाज...
क्यों मन मौसम बन जाता है तब
बदलते मौसम के साथ
ऊदा, गहरा, लाल, पीला, नीला मन !
मौसम के साथ साथ मन के उद्गार भी बदलते हैं । मनोवैज्ञानिकों का कहना है की गर्म प्रदेशों में रहने वाले लोग अधिक क्रोध करते हैं |
जवाब देंहटाएंस्वपनीली सी रचना ....कितने रंग न्हारे आँखों मे .......मानो गागर में हो सागर ....
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर अभिव्यक्ति अनीता जी ...!!
सुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंआभार आदरणीया-
बहुत ही कोमल और स्वप्निल सी रचना । जब हम अकेले होते हैं तब प्रकृति ही तो संगिनी होती है । बहुत ही खूबसूरत भाव और शब्द अनीता जी ।
जवाब देंहटाएंअच्छा लगा मन और मौसम को ऐसे देखना.
जवाब देंहटाएंक्यों मन मौसम बन जाता है तब
जवाब देंहटाएंबदलते मौसम के साथ
ऊदा, गहरा, लाल, पीला, नीला मन !
सुन्दर रचना इन्द्रधनुष है मेरा मन।
आप सभी सुधी पाठकों का स्वागत व आभार !
जवाब देंहटाएं