उड़ न पाते हम गगन में
गुनगुनी सी आग भीतर
कुनकुना सा मन का पानी,
एक आशा ऊंघती सी
रेंगती सी जिन्दगानी !
फिर भला क्यों कर मिलेगा
तोहफा यह जिन्दगी का,
इक कशिश ही, तपन गहरी
पता देगी मंजिलों का !
जो जरा भी कीमती है
मांगता है दृढ़ इरादे,
एक ज्वाला हो अकंपित
पूर्ण हों जो खुद से वादे !
दे चुनौती, बन जो प्रेरक
गर न हों अवरोध पथ में,
आज थम सोचें जरा, क्या
उड़ सकेंगे हम गगन में ?
भावपूर्ण प्रस्तुति | बढ़िया लिखा है |
जवाब देंहटाएंमेरी नई रचना :- जख्मों का हिसाब (दर्द भरी हास्य कविता)
दे चुनौती, बन जो प्रेरक
जवाब देंहटाएंगर न हों अवरोध पथ में,
आज थम सोचें जरा, क्या
उड़ सकेंगे हम गगन में ?... एक ओर सोचने को विविश करती तो दूसरी और प्रेरणा देती सुन्दर कविता ...
आपकी इस उत्कृष्ट रचना की चर्चा कल रविवार, दिनांक 29 सितम्बर 2013, को ब्लॉग प्रसारण पर भी लिंक की गई है , कृपया पधारें , औरों को भी पढ़ें और सराहें,
साभार सूचनार्थ
सुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंआभार आदरणीया-
एक आशा ऊंघती सी
जवाब देंहटाएंरेंगती सी जिन्दगानी !
.....
आशा :: सबसे सुन्दर शब्द!
Your poems are always inspiring!!!
पहले की तरह ही एक सुन्दर और प्रेरक कविता है ।
जवाब देंहटाएंदे चुनौती, बन जो प्रेरक
जवाब देंहटाएंगर न हों अवरोध पथ में,
आज थम सोचें जरा, क्या
उड़ सकेंगे हम गगन में ...
हर चुनौती जो राह में आए उसको हंस के स्वीकार करने को प्रेरित करती रचना ...
सच कहा आपने कुनमुनाती सी जिंदगी में वो प्यास भरनी होगी ……बहुत सुन्दर |
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंप्रदीप जी, अनुपमा जी, शालिनी जी, सुमन जी, ओंकार जी, इमरान, दिगम्बर जी, रविकर जी, व गिरिजा जी आप सभी का स्वागत व आभार !
जवाब देंहटाएंबहुत सकारात्मक सन्देश !
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर .
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" गुरुवार, कल 10 दिसंबर 2015 को में शामिल किया गया है।
जवाब देंहटाएंhttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमत्रित है ......धन्यवाद !