ऐसा है वह गणराया
मौन मुखर हो उठा है उसका
सदियों से जो चुप बैठा है,
इक मुस्कान से उगता सूरज
दूजे से चंदा उगता है !
फूल भी तो कह जाते सब कुछ
मौन टूटता ही रहता है,
नदियाँ, पर्वत, पंछी गाते
गणनायक न कुछ कहता है !
कर्महीन न रहता पल भर
पल-पल नया रचे जाता है,
ढूँढ़ ढूँढ़ मन हुआ अचम्भित
वह अनंत सृजे जाता है !
करुणा का इक सागर भीतर
हर कल्पित सुख हो साकार,
ज्ञान, शब्द से बाहर आकर
क्षण-क्षण लेता है आकार !
क्षितिज बना है उसका अंतर
जल, थल, अनल, अनिल से सजकर
स्वयं ही पूजित स्वयं ही पूजा
स्वयं पुजारी जाता रचकर !
अशना और पिपासा जागे
जब सत्य की मानव उर में,
तभी शुरू होता है सुख का
सफर एक अनुपम जीवन में !
गणनायक के इस विराट् स्वरूप को नमन, और इन पंक्तियों की रचयित्री को नमस्कार!
जवाब देंहटाएंप्रतिभा जी, स्वागत व आभार !
हटाएंबहुत सुन्दर सामयिक प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंगणेशचतुर्थी की हार्दिक शुभकामनायें!
कर्महीन न रहता पल भर
जवाब देंहटाएंपल-पल नया रचे जाता है,
ढूँढ़ ढूँढ़ मन हुआ अचम्भित
वह अनंत सृजे जाता है ..
नमन है विराट वक्रतुंड को ... सुन्दर भावमय पंक्तियाँ उस विराट प्रभू का एहसास कराती हैं ...
सुंदर स्तुति ..जय गणपति बप्पा
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंहार्दिक शुभकामनाएं!
बहुत सुन्दर रचना है। कृपया बतलाएं गणेश चतुर्थी का चाँद देखना अशुभ क्यों समझा जाता है।
जवाब देंहटाएंगणेश चतुर्थी पर चाँद देखना अशुभ मानते हैं, इसके पीछे यह कहानी सुनी है, एक बार चाँद ने गणेश के आकार को देखकर उनका मजाक उड़ाया था, उस दिन चतुर्थी ही थी, गणपति ने उनको शाप दिया कि इस दिन कोई तुम्हारा दर्शन नहीं करेगा. अब इसका क्या धार्मिक या आध्यात्मिक अर्थ है यह तो नहीं पता.
हटाएंकविता जी, दिगम्बर जी, अनुपमा जी व चैतन्य आप सभी का स्वागत व आभार !
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार !
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर । पावन पर्व की शुभकामनायें |
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