चलो, कुछ करें
चलो उठ खड़े हों, झाड़ें
सिलवटों को
मन के कैनवास को फैला लें
क्षितिज तक
प्यार के रंगों से फिर कोई
खूबसूरत सोच रंग डालें
बांटे आपस में हर शै जो
अपनी हो
चलो आँखें बंद करें, गहरे
उतर जाएँ
जानें पर्त दर पर्त
अंतर्मन को
आत्मशक्तियाँ जागृत होकर
एक हो जाएँ
अपना छोटे से छोटा सुख भी
साझा हो जाये
चलो कह दें, सुना दें मन
की हर उलझन
समझ लें, गिन लें दिल की
हर धडकन
अपना सब कुछ सौंप कर
निश्चिंत हो जाएँ
विश्वास का अमृत पियें
चलो करीब आयें, जश्न मनाएं
मैं और तुम से ‘हम’ होने
की याद में
कोई गीत गुनगुनाएं
खुली आँखों से सपने देखें
मौसम की मस्ती में डूबे
उतरायें !
फिर कोई खूबसूरत सोच रंग डाले-
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया आदरेया-
आभार
चलो उठ खड़े हों, झाड़ें सिलवटों को
जवाब देंहटाएंमन के कैनवास को फैला लें क्षितिज तक
प्यार के रंगों से फिर कोई खूबसूरत सोच रंग डालें
अनुपम भावों का संगम ....
khubsurat rachna .............pyar ka rang sabke jivan me bhara rahe...............
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंप्रेम का सागर जब उमड़ता है तो मन हिलोरे लेता है ... फिर नाचता है मन मयूर हम हो के ...
जवाब देंहटाएंरविकर जी, सदा जी, संध्या जी, ओंकार जी, दिगम्बर जी आप सभी का स्वागत व आभार !
जवाब देंहटाएंजीवन का उत्सव धूम-धाम से मनाएं | बहुत ही सुन्दर रचना |
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