कुदरत की रीत अनोखी है
जो खाली है वह भरा हुआ
जो कुछ भी नहीं वही सब कुछ,
कुदरत की रीत अनोखी है
जो लुटा रहा वह ही पाता !
जो नयन मुँदे वे सब देखें
उस की यह कैसी चतुराई,
थम जाता जो वह ही पहुँचा
जो हुआ मौन सब कह जाता !
जो जाने कुछ वह क्या जाने
ज्ञानी बालक सम बन जाता,
पा लेता सब कुछ खोकर भी
यह राज न जगत समझ पाता !
जो दूर बहुत वह निकट अति
जो स्वयं से प्रीत करे न थके,
पाकर जिसको मन खो जाये
फिर कौन यह भेद कहे जाता !
जो हुआ मौन सब कह जाता !
जवाब देंहटाएंवाह!
क्या बात वाह! अति सुन्दर
जवाब देंहटाएंतीन संजीदा एहसास
बढ़िया दर्शन
जवाब देंहटाएंवाह बहुत सुंदर !
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर दर्शन … नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
जवाब देंहटाएं--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (29-12-2013) को "शक़ ना करो....रविवारीय चर्चा मंच....चर्चा अंक:1476" पर भी है!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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नव वर्ष की अग्रिम हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!!
- ई॰ राहुल मिश्रा
बहुत बहुत आभार !
हटाएंकुदरत के आगे सब मौन ही हो जाते हैं ...
जवाब देंहटाएंनव वर्ष की हार्दिक शुभकामनायें ...
अनुपमा जी, दिगम्बर जी, संध्या जी, माहेश्वरी जी, ओंकार जी, गाफिल जी आप सभी का स्वागत व आभार !
जवाब देंहटाएंजु लुटा रहा वही पाता। ……… बहुत ही बढ़िया …... जो बचाकर रखेंगे उनसे छीन लिया जायेगा और जो लुटा देंगे उन्हें और दिया जायेगा |
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