रस मकरंद बहा जाता है
अंजुरी क्यों खाली है अपनी
रस मकरंद बहा जाता है,
साज सभी सजे महफिल में
सन्नाटा क्यों कर भाता है !
रोज भोर में भेज संदेसे
गीत जागरण वह गाता है,
ढांप कर्ण करवट ले लेता
खुद से दूर चला जाता है !
त्याज्य हुआ यहाँ अभीप्सित
हाल ना कुछ कहा जाता है,
बैठा है जो घर के अंदर
दूर जान छला जाता है !
पीठ दिखाए उसको बैठे
बिन जिसके न रहा जाता है,
क्यों कर दीप जले अंतर में
सारा स्नेह घुला जाता है !
सचमुच अवसर किसी की प्रतीक्षा नही करता । राह में बिखरे फूलों को जितने चुन सकें वे ही हमारे हैं पर परवाह किसे है ।
जवाब देंहटाएंगिरिजा जी, आपने सही कहा है..स्वागत व आभार !
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