जीवन का गीत
हर तरफ है शोर
भीड़ और दुःख का साम्राज्य...
बहते हुए अश्रु, सिसकियाँ और अर्थहीन आवाजें
जीवन जैसे एक खोल में सिमट आया हो
उड़ने के लिए गगन तो है मगर भरा है धुँए से
त्राण यदि पाना है तो भीतर ही जाना है
बाहर का सब कुछ कितना बेगाना है
शब्द हैं, चेहरे हैं, बातें हैं खोखली
पर इन अर्थहीन बातों में ही जीवन को पाना है
सरल दृष्टि सरल उर सब पर लुटाना है
नहीं कहीं मुक्ति और, नहीं कोई स्वर्ग और
कला की ऊंचाइयों को
ओस की बूंदों में पिरोये हुए पाना है
शब्दों के जंगल से पार हुआ मन कहे
जीवन का गीत अब मौन में ही गाना है
कमी कुछ नहीं कहीं, हर घड़ी पूर्ण है
नहीं है अभाव कोई, नहीं कहीं जाना है !
आपकी अन्य रचनाओं की तरह ही बहुत सारगर्भित और सुन्दर कविता है ।सचमुच दुखों से त्राण हो या आनन्द की अनुभूति ,स्रोत अन्दर ही होते हैं ।
जवाब देंहटाएंगिरिजा जी, सही कहा है आपने, आभार !
हटाएंत्राण यदि पाना है तो भीतर ही जाना है
जवाब देंहटाएंबाहर का सब कुछ कितना बेगाना है
...बिल्कुल सच..बहुत सुन्दर और गहन प्रस्तुति..आभार
काफी उम्दा रचना....बधाई...
जवाब देंहटाएंनयी रचना
"सफर"
आभार
सत्य की अनुभूति करता ... अंतस के भाव जागृत करती रचना ...
जवाब देंहटाएंबहुत ही सारगर्भित और सुन्दर रचना..
जवाब देंहटाएंकमी कुछ नहीं कहीं, हर घड़ी पूर्ण है
जवाब देंहटाएंनहीं है अभाव कोई, नहीं कहीं जाना है !.......... इससे बड़ा सत्य नहीं कुछ भी | गहनतम पंक्तियाँ |
कैलाश जी, राहुल जी, दिगम्बर जी, माहेश्वरी जी, व इमरान आप सभी का स्वागत व बहुत बहुत आभार !
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