अब तो कुछ बात हो
फूलों से बात करें, बिछौना बने घास
डालियों के साथ झूमें, निहारें आस-पास
चाँद संग होड़ लगे, चाँदनी संग हम भी जगें
सो लिए बरसों बरस, अब तो प्रमाद छंटे
जीवन को मांग लें, अनकही प्रीत को
सीख लें कुदरत से, बंटने की रीत को
स्वप्नों को तोड़ दें, सच से मुलाकात हो
भरमाते उम्र बीती, अब तो कुछ बात हो
आँखों में डाल आँखें, खुद से भी मिलें कभी
होना ही काफी है, बन न कुछ पाए कभी
होकर ही जानेंगे, कुदरत का हैं हिस्सा
जाने कब आँख मुँदे, बन जाएँगे किस्सा
bahut sundar rachna ................kudrat ka hissa ............sundar bhav......
जवाब देंहटाएंकाफी उम्दा प्रस्तुति.....
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (05-01-2014) को "तकलीफ जिंदगी है...रविवारीय चर्चा मंच....चर्चा अंक:1483" पर भी रहेगी...!!!
आपको नव वर्ष की ढेरो-ढेरो शुभकामनाएँ...!!
- मिश्रा राहुल
फूलों से बात करें, बिछौना बने घास
जवाब देंहटाएंडालियों के साथ झूमें, निहारें आस-पास
चाँद संग होड़ लगे, चाँदनी संग हम भी जगें
सो लिए बरसों बरस, अब तो प्रमाद छंटे
बहुत खुबसूरत !
नया वर्ष २०१४ मंगलमय हो |सुख ,शांति ,स्वास्थ्यकर हो |कल्याणकारी हो |
नई पोस्ट सर्दी का मौसम!
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जीवन को मांग लें, अनकही प्रीत को
जवाब देंहटाएंसीख लें कुदरत से, बंटने की रीत को
वाह ! क्या कहने ! बहुत ही सुंदर भावाभिव्यक्ति ! बहुत खूबसूरत रचना !
सच कहा...अब तो कुछ बात हो।
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति -
जवाब देंहटाएंआभार आपका-
सादर -
सच है बहुत कुछ है कुदरत से सीखने को रीत, प्रति सभी कुछ तो है ...सार्थक भाव लिए सुंदर भवाभिव्यक्ति....
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर भावाभिव्यक्ति !..आभार
जवाब देंहटाएंजीवन को मधुर हास्य की तरह जीना ... सहज जीना... ही तो जीवन है ...
जवाब देंहटाएंवाह बहुत ही शानदार |
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