वर्षा को भी मची है जल्दी
टिप-टिप बूंदें दूर गगन से
ले आतीं संदेश प्रीत के,
धरा हुलसती हरियाली पा
खिल हँसती ज्यों बोल गीत के !
शिशिर अभी तो गया नहीं है
रुत वसंत आने को है,
मेघों का क्या काम अभी से
फागुन माह चढ़ा भर है !
वर्षा को भी मची है जल्दी
उधर फूल खिलने को आतुर,
मोर शीत में खड़े कांपते
अभी नहीं जगे हैं दादुर !
मानव का ही आमन्त्रण है
उथल-पथल जो मची गगन में,
बेमौसम ही शाक उगाता
बिन मौसम फल-फूल चमन में !
जवाब देंहटाएंसुन्दर गीत राग लिए लय ताल अर्थ छटा लिए :
टिप-टिप बूंदें दूर गगन से
ले आतीं संदेश प्रीत के,
धरा हुलसती हरियाली पा
खिल हँसती ज्यों बोल गीत के !
अति सुंदर!
जवाब देंहटाएंओंकार जी, शिल्पा जी, वीरू भाई व राजीव जी आप सभी का स्वागत व आभार !
जवाब देंहटाएंबिन मौसम की बरसात पर लिखा बढ़िया गीत |
जवाब देंहटाएंजब सब भागे जा रहे हैं तो वर्षा पीछे क्यों ? सुन्दर रचना..
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