वही
अस्तित्त्व की गहनतम पुकार
हवा और धूप की तरह जो
बिखरा है चारों ओर
पर फिसल-फिसल जाता है
मुट्ठी से जलधार की तरह..
सूक्षतम इकाई भी अस्तित्त्व की
जो
सीख लेता है देना
जान
ही लेगा वह पाने का राज भी
जीत
की चाह गिर जाती है जिस क्षण
हार भी छोड़ देती है रास्ता
सुख की तलाश खत्म होते ही
हो जाता है हर दुःख बेगाना....
सच्ची बात
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना अर्थ और भाव की बेहतरीन अन्विति
जवाब देंहटाएंगहन और हृदयस्पर्शी ...बहुत सुंदर रचना ...!!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर बिम्ब
जवाब देंहटाएंदीदी, वीरू भाई व अनुपमा जी आप सभी का स्वागत व आभार !
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