संकल्प और विकल्प दो तटों के मध्य नदी बहती है हम किनारों पर ही बैठे बैठे देखते रहते, जान नहीं पाते वह क्या कहती है ! मन की नदी क्या क्या नहीं सहती... आदरणीया अनिता जी सुंदर रचना के लिए साधुवाद
आपकी लेखनी से सदैव सुंदर श्रेष्ठ सार्थक सृजन होता रहे... मंगलकामनाओं सहित... -राजेन्द्र स्वर्णकार
सच कहा आपने । दुविधा में किसी निष्कर्ष पर नही पहुँचा जासकता । मन व्यग्रता के भँवरों में चक्कर लगाता रहता है ।
जवाब देंहटाएंdekh bhi nahi sakte .hamme vah dhairy kahan .nice poem .
जवाब देंहटाएंइस नदी की थाह कहाँ मिलती है !
जवाब देंहटाएंनदी सार्थक सन्देश देती अहि ... चलना ही जीवन है ... अंत में महासागर से मिलना है ...
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संकल्प और विकल्प
दो तटों के मध्य
नदी बहती है
हम किनारों पर ही बैठे बैठे
देखते रहते, जान नहीं पाते
वह क्या कहती है !
मन की नदी क्या क्या नहीं सहती...
आदरणीया अनिता जी
सुंदर रचना के लिए साधुवाद
आपकी लेखनी से सदैव सुंदर श्रेष्ठ सार्थक सृजन होता रहे...
मंगलकामनाओं सहित...
-राजेन्द्र स्वर्णकार
प्रकृति के रहस्यों के माध्यम से जीवन का सन्देश देती आपकी रचनाये मन को भाती है सुंदर सार्थक प्रेरक ..सादर..
जवाब देंहटाएंगिरिजा जी, प्रतिभा जी, शिल्पा जी, शालिनी जी, राजेन्द्र जी व दिगम्बर जी आप सभी का स्वागत व बहुत बहुत आभार 1
जवाब देंहटाएंअपनी बिबाई से मारे हम..
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