किसकी बाट जोहता यह उर
नीले नभ पर ज्यों बदलियाँ
नूतन रंगों से रंग जातीं,
अंतर के कोरे कागज पर
सुधियाँ कोई नृत्य सजातीं !
जाने किस दिन की बातें हैं
जाने किस पल की यादें हैं,
कोई तार नजर न आता
फूलों की लड़ियाँ पिर जातीं !
मन उड़ने-उड़ने को होता
कहने को कुछ भी न होता,
अधर कांपते, मौन हृदय में
मधुरिम छायाएं घिर आतीं !
किसकी बाट जोहता यह उर
किसके हित बजते अंतर सुर,
मिलकर भी जो कभी न मिलता
उसकी चुप पुकार तड़पाती !
पल-पल आने की आहट है
मधुर अति यह अकुलाहट है,
जाने कैसा रूप धरेगा
प्रतिभिज्ञा मति कर न पाती !
चली गोरी पी से मिलन को चली। ये पी ही हमारा सेल्फ है ,ब्रह्म है ईश्वर है ये सारी सृष्टि है।
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार वीरू भाई !
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