अन्तरिक्ष का नहीं है छोर
तुझसे ही है जग में हलचल
तू है, तू ही खलबल मन की,
तू ही जीवन का कारण है
तू वजह हर एक उलझन की !
युद्ध जहाँ हो रहा वहाँ भी
तेरे नाम पर लड़ते लोग,
तप में लीन तपस्वी योगी
तुझसे ही लगाते योग !
शीतलतम हिमखड हैं कहीं
ज्वालामुखी कहीं फटते हैं,
कहीं लपकती तलवारे हैं
कहीं शंखनाद बजते हैं !
एक द्वंद्व से ग्रसित है सृष्टि
दिवस उजाले रात्रि भी घोर,
सागर की असीम गहराई
अन्तरिक्ष का नहीं है छोर !
भू के भीतर बहता लावा
शीश हिमानी सा शीतल,
मीलों रेगिस्तान बिछे हैं
कोसों तक फैला है जल !
दो ही दष्टि में आते हैं
दो पर ही यह माया टिकती,
एक तत्व है पीछे इसके
जिस पर सबकी नजर न जाती !
दोनों पल-पल साथ जी रहे
सन्त और असंत यहाँ पर,
पूजा और प्रार्थना घटती
संग ही होते युद्ध जहाँ पर !
युद्ध जहाँ हो रहा वहाँ भी
जवाब देंहटाएंतेरे नाम पर लड़ते लोग,
तप में लीन तपस्वी योगी
तुझसे ही लगाते योग !
vicharniy satya .nice expression anita ji .
कविता दिल को छूने वाली है!
जवाब देंहटाएंबहुत सीमित है बुद्धि, इस असीम गहराई को थाह नहीं सकती !
जवाब देंहटाएंबढ़िया लेखन आ. धन्यवाद !
जवाब देंहटाएंInformation and solutions in Hindi ( हिंदी में समस्त प्रकार की जानकारियाँ )
अनुपम रचना के लिए बधाई..
जवाब देंहटाएंउनकी विचित्रिता ,विरोधाभास ,समानता ,निरंतरता का कोई अंत नहीं है ,अनन्त है ,इसे देख कर अचरज किया जा सकता है ,सबको आत्मसात नहीं किया जा सकता है | बहुत सुन्दर प्रयास ,बधाई !
जवाब देंहटाएंअच्छे दिन आयेंगे !
कर्मफल |
शालिनी जी, रंजना जी,आशीष जी, अमृता जी, कालीपद जी, प्रतिभा जी आप सभी का स्वागत व आभार !
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