वह
वह
चहका कूक बनकर
महका फूल बनकर,
उमगा दूब सा वह
विहंसा धूप सा वह !
खिलता हर कली में
फिरता हर गली में,
रचता नीड़ सुंदर
बहता नीर बनकर !
जलता तारिका बन
उड़ता सारिका बन
गिरता निर्झरों सा
पलता नव शिशु सा !
भजता भक्त बनकर
रचता कवि बनकर
गढ़ता बुत नये नित
बढ़ता उषा संग नित !
उसी के लीला है सारी. उसी से सृष्टि है.
जवाब देंहटाएंसही कहा है निहार जी स्वागत व आभार !
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