कोंपल कोंपल रस झरता
मदमस्त हुआ आलम सारा
आया वसंत नव कुसुम खिले ,
उमड़ी आती मधुमय सुरभि
पौधों के सोये कोष खुले !
खलिहानों पर छायी मस्ती
शुभ पीताम्बर ओढ़े हँसते,
जल धाराएँ बह निकलीं हैं
हटा शीत की चादर तन से !
तंद्र तज जागे वन प्रान्तर
जीवन से फिर हुआ मिलन,
छूट गया अवांछित था जो
जाग उठा कोई नव रंग !
जाना पहचाना सा प्रियतम
आया मनहर रूप धरे,
बासंती जब पवन बहे तो
सूने अंतर भये हरे !
जीवन फिर अंगड़ाई लेता
नव रूप लिये हँसता खिलता,
ऋतु फागुनी मादक मोहक
कोंपल कोंपल रस झरता !
बहुत ही सुन्दर !!
जवाब देंहटाएंसादर
अनुलता
जीवन फिर अंगड़ाई लेता
जवाब देंहटाएंनव रूप लिये हँसता खिलता,
ऋतु फागुनी मादक मोहक
कोंपल कोंपल रस झरता !
........दिल को छूते अलफ़ाज़
अहा ... रस से सराबोर कर गयी आपकी यह रस भरी कविता !
जवाब देंहटाएंअनुजी, संजय जी व शालिनी जी स्वागत व आभार !
जवाब देंहटाएंएक स्फूर्ति जाग्रत करती बहुत सुन्दर रचना...आभार
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