नेह घट सजाने हैं
आशा के नहीं आस्था के दीप जलाने हैं
आकाश कुसुम नहीं श्रद्धा पुष्प खिलाने हैं,
हर लेंगे तम, जो भर देंगे सुवास मन में
प्रीत की अल्पना पर नेह घट सजाने हैं !
मोहपाश तोड़कर मुक्ति राग बज उठें
गगन में उड़ान भर मन मयूर गा उठें,
पाषणों से ढके स्रोत जो सिमटे थे
हुए प्रवाहित अबाधित वे बह निकलें !
छाए बहार चहुँ ओर मिटे तम घट का
झांकें क्या है पार खोल पट घूँघट का,
जो न गाए गीत कभी न राग जगे
परिचय कर लें आज नये उस स्वर का !
सुन्दर सकारात्मक भावों और आशा से भरपूर सुन्दर कविता !!
जवाब देंहटाएंअच्छी रचना...अंतिम पंक्तियाँ तो बहुत ही अच्छी लगीं.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंअनुपम भाव संयोजन ....
जवाब देंहटाएंशालिनी जी, संजय जी, ओंकार जी व सदा जी आप सभी का स्वागत व आभार !
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