धरती और आकाश गा रहे
अब हमने खाली कर डाला
अपने दिल की गागर को,
अब तुझको ही लाना होगा
इसमें दरिया, सागर को !
अब न कोई सफर शेष है
कदमों को विश्राम मिला,
अब तुझको ही पहुंचाना है
शबरी को जहाँ राम मिला !
अब न जोड़ें अक्षरमाला
कविता, गीत, कहानी में,
झरना होगा स्वयं ही तुझको
इन लफ्जों की रवानी में !
अब क्या चाहें मांग के
तुझको
पूर्ण हुआ सारे अरमान,
धरती और आकाश गा रहे
संग हंसे दिन रात जहान !
तितली, पादप बने हैं भेदी
हरी दूब देती संदेश,
अब तू कहाँ छिपा है हमसे
सुनें जरा अगला आदेश !
अब तो जीना मरना सम है
कैसी घड़ी अनोखी है,
इक चट्टान चैन की जैसे
क्या ये तेरे जैसी है !
अब न कोई सफर शेष है
जवाब देंहटाएंकदमों को विश्राम मिला,
अब तुझको ही पहुंचाना है
शबरी को जहाँ राम मिला !
बहुत खूब वाह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह
अब हमने खाली कर डाला
जवाब देंहटाएंअपने दिल की गागर को,
अब तुझको ही लाना होगा
इसमें दरिया, सागर को !
...लाज़वाब और गहन पंक्तियाँ...जब ह्रदय को इच्छाओं, मोह, माया से रिक्त करेंगे तभी प्रभु भक्ति का प्रवेश वहां होगा...अद्भुत रचना
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन हास्य कवि ओम व्यास 'ओम' और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
जवाब देंहटाएंसुंदर भाव सुंदर रचना ।
जवाब देंहटाएंइसकविता के लिये क्या कहूँ आदरणीया अनीता जी .भक्ति और वैराग्य को कितने रागमय स्वर दिये हैं आपने . वन्दनीय ..
जवाब देंहटाएंBahut pyari kavita hai. padhkar bahut achha laga.
जवाब देंहटाएंसुंदर गीत.
जवाब देंहटाएंजितेद्र जी, कैलाश जी, हर्षवर्धन जी, सुशील जी, गिरिजा जी, निहार जी व रचना जी, आप सभी का स्वागत व आभार !
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