लद्दाख – धरा पर चाँद-धरा
कल नुब्रा वैली से
लौटकर हमने चाय के साथ सैंडविच का आनंद लिया, कुछ देर आराम करने के बाद टहलने गये.
लैपटॉप पर वे सारी तस्वीरें देखीं जो पिछले दिनों उतारी थीं. सुबह पांच बजे ही
सवेरा हो जाता है यहाँ, प्रातः भ्रमण से लौटते समय रनवे पर उतरते हुए एक हवाई जहाज
की तस्वीर उतारी. आज नाश्ते में कुक ने आलू-टमाटर की सब्जी और पूरी बनाई साथ में
रोज कि तरह दही. इस समय भाई अपने दफ्तर चला गया है जो दोपहर दो बजे लंच के लिए
लौटेगा. पतिदेव कम्प्यूटर पर अपना कुछ काम करके आराम रहे हैं मेरी भी इस समय तक की
डायरी एंट्री हो चुकी है. आज हमने वस्त्र आदि धोये हैं, कहीं दूर नहीं जाना है शाम
को यहीं लेह के बाजार तक जायेंगे. बाहर तेज धूप है सोचती हूँ कुछ देर आराम कर लूँ.
पैंगोंग झील |
३ जुलाई
अभी कुछ देर पूर्व
हमने खिड़की के बाहर ऊंचे पहाड़ों पर पड़ रही धूप के नजारे देखते हुए सुबह की चाय का
आनंद लिया. ठंड बिलकुल गायब हो चुकी है, जो एक घंटा पूर्व सुबह की लगभग चार किमी
की सैर के दौरान महसूस हो रही थी. जाते समय चढ़ाई है कुछ प्रयास करना पड़ता है पर
वापसी में सहजता से दूरी तय हो जाती है. यहाँ काफी स्वच्छता है तथा सडकें भी काफी
अच्छी हालत में हैं. आज तो लौटते समय
गोएयर के जहाज की लैंडिंग की वीडियो फिल्म बनाई. हम हवाई अड्डे के थोड़ा पीछे ही रह
रहे हैं. लगभग सारी फ्लाइट्स सुबह के वक्त ही आती हैं, क्योंकि धूप तेज होते ही
यहाँ तेज हवा चलने लगती है. आज हमें पेंगौंग झील देखने जाना है, जो एशिया
की सबसे बड़ी साल्ट वाटर की शांत झील है जो इतनी ऊंचाई पर स्थित है. १४००० फीट की
ऊंचाई पर स्थित इस झील का दो तिहाई भाग तिब्बत में है. रात को हम वहीं रहने वाले
हैं, कल शाम तक वापस लौटेंगे. टीवी पर जो समाचार आ रहे हैं, एक नई उम्मीद जगा रहे
हैं. डिजिटल इंडिया के बाद स्किल इंडिया का अभियान भी सरकार द्वारा चलाया गया है.
लद्दाख की हमारी अब तक की यात्रा सुचारू रूप से चल रही है. यहाँ के रास्ते भी उतने
ही सीधे-सरल हैं जैसे यहाँ के लोग, कहीं भटकने की गुंजाइश नहीं है. कल रात्रि भी
कुछ स्वप्न देखे जो भीतर मन की गहराई में चल रही उथल-पुथल को बाहर निकलने में
सक्षम रहे. परसों रात भी स्वप्न देखा था और एक पुरानी समस्या का समाधान पाया. कल
यात्रा में हुए अनुभव को फिर से महसूस किया. नींद गहरी नहीं आती यहाँ, कल दिन में
भी सो गयी थी जो हवाई अड्डे पर दिए गये निर्देशों के अनूरूप नहीं था.
चांगला |
४ जुलाई
कल सुबह नौ बजे हम
झील के लिए रवाना हुए. कारू होते हुए चांगला पहुंचे जो १७६८८ फीट की ऊंचाई
पर है. बर्फ से ढकी पहाड़ियाँ भव्य लग रही थीं. मार्ग में याक, जंगली घोड़े, खच्चर
तथा फे नामके जंगली पीले बड़े आकार के चूहे दिखे. हमने हर जगह रुककर कुछ तस्वीरें
लीं और आगे की यात्रा आरम्भ की.
मार्ग में एक गाँव जिसका नाम सक्ति है साथ-साथ चल रहा था. हरे-भरे सरसों व जौ के खेत तथा सीधे पंक्ति बद्ध खड़े वृक्ष. पर्वतों के मध्य से जब पहली बार झील के दर्शन हुए तो हम मंत्रमुग्ध से देखते रह गये. पथरीले पर्वतों पर बनी सड़क पर बढ़ते हुए हम झील के निकट पहुंचे. आमिर खान की फिल्म ‘थ्री इडियट’ के नाम पर एक रेस्तरां भी वहाँ था. दोरजी हमें उस स्थान पर ले गया जहाँ फिल्म की शूटिंग की गयी थी.
मार्ग में एक गाँव जिसका नाम सक्ति है साथ-साथ चल रहा था. हरे-भरे सरसों व जौ के खेत तथा सीधे पंक्ति बद्ध खड़े वृक्ष. पर्वतों के मध्य से जब पहली बार झील के दर्शन हुए तो हम मंत्रमुग्ध से देखते रह गये. पथरीले पर्वतों पर बनी सड़क पर बढ़ते हुए हम झील के निकट पहुंचे. आमिर खान की फिल्म ‘थ्री इडियट’ के नाम पर एक रेस्तरां भी वहाँ था. दोरजी हमें उस स्थान पर ले गया जहाँ फिल्म की शूटिंग की गयी थी.
सक्ति गाँव |
झील का नीला और हरा जल मीलों तक फैला हुआ था, एक तरफ
पर्वत थे और दूसरी ओर यात्रियों के लिए कैंप व तम्बू लगाये गये थे. कई श्वेत व
सलेटी पंखों वाले पक्षी जिनकी चोंच व पंजे लाल थे, पानी में किलोल कर रहे थे. धूप
तेज थी पर हवा भी तेज थी. हमें ऊंचाई पर होने वाली समस्या का अनुभव होने लगा था.
हमने भी रात्रि निवास के लिए एक कैम्प में डेरा डाल लिया. कुछ देर वहाँ विश्राम के
बाद हम साढ़े छह बजे पुनः झील पर गये. धूप अब दूर पर्वतों के शिखरों पर खिसक गयी
थी, ठंड उसी अनुपात में बढ़ गयी थी. मफलर, स्कार्फ. दस्ताने आदि पहनकर हमने संध्या
का आनंद लिया. एक व्यक्ति पानी में पैर डाले हुए चिल्ला रहा था, ठंड के कारण उसकी
जान निकल रही थी पर फोटो खिंचाने के लिये शायद पानी में उतर गया था. रात्रि भोजन
के बाद आकाश में दिख रहे पूर्ण चन्द्रमा को तथा झील के जल में नृत्य कर रही उसकी
चन्द्रिका को देखकर कैम्प के बाहर से ही उसकी तस्वीरें उतारीं. ऊपर आकाश में चमकते
हुए सैंकड़ों तारे इतने निकट प्रतीत हो रहे थे जैसे उन्हें छुआ जा सकता है.
झील पर जलचर |
सुबह साढ़े पांच बजे
थे जब हम टेंट से निकले, सूरज काफी ऊँचा चढ़ आया था. पानी में उसकी सफेद रौशनी पड़
रही थी. कई तस्वीरें लीं. रात को एक बजे सिर दर्द की कारण नींद खुल गयी थी, समझ
में आया इसीलिए ज्यादातर लोग रात्रि को झील पर रुकते नहीं हैं. नहाने के लिए गर्म
पानी दिया जो यहाँ भी सोलर पॉवर से गर्म किया गया था. स्नानघर का फर्श कच्चा था,
कोई फ्लोरिंग नहीं डाली गयी थी और ठंड भी बहुत थी सो हाथ-मुंह धोकर ही हम तैयार हो
गये. नाश्ते में पोहा तथा नमक व अजवायन के
तिकोनाकर सादे परांठे (अमूल मक्खन व जैम के साथ) और चाय लेकर सवा आठ बजे हमने
वापसी की यात्रा आरम्भ की. साढ़े बारह बजे हम पेगौंग झील से लौट आये.
सुन्दर
जवाब देंहटाएंवाह अनीता जी लद्दाख का इतना सुंदर यात्रा वृत्तान्त और वाह भी इतने सुंदर चित्रों से सुसज्जित. मन आनंदमय हो गया.
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