जाता
हुआ वर्ष
वक्त
का पहिया आगे कुछ सरक गया
अनगिन
सौगात दे और एक बरस गया
दुनिया
में युद्ध कहीं शांति की बात हुई
पारा
कुछ और चढ़ा भारी बरसात हुई
बदलीं
निष्ठाएं कुछ सत्ताए भी छिनीं
सहनशीलता
घटी अफवाहें भी बुनीं
तेवर
शीतल हुए मंदी की मार पड़ी
योगमय
हुआ विश्व ध्यान की लहर बढ़ी
सीरिया
में रक्त बहा बेघर को घर मिला
द्वार
खुले ही मिले जहाँ गया काफिला
आई
एस का जुल्म बढ़ा दूरियां भी घटीं
समीकरण
बने नये मित्रता को शक्ल दी
विष
बढ़ा वायु में विकास महंगा पड़ा
जाता
हुआ यह बरस दे कई सबक गया
पूरे साल को बहुत अच्छे से समेटा है आपने. सुन्दर रचना.
जवाब देंहटाएंसच में जाने वाला वर्ष बहुत मीठी कड़वी यादें छोड़ जा रहा है...नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं!
जवाब देंहटाएंनिहार जी व कैलाश जी, स्वागत व आभार !
जवाब देंहटाएंसबक से सब सीखे तब तो .. सुन्दर रचना ..
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