पा प्रकाश का परस सुकोमल
दानव और दैत्य दोनों ही 
मानव के अंतर में रहते,
कभी खिलाते  उपवन सुंदर 
मरुथल में वे ही भटकाते !
गहरी खाई ऊँचे पर्वत
धूल भरे कंटक पथ मिलते,
समतल सीधी राह कभी बन 
फूलों से पथ पर बिछ जाते !
एक बिना न दूजा रहता 
द्वंद्व यही सुख-दुःख जीवन का,
पलक झपकते ही सपनों में 
दैत्य कभी देव बन जाता !
अंधियारी रातों में पलकर 
अंकुर फूटे, खुशबू बनती,
पा प्रकाश का परस सुकोमल 
कली कोई कुसुम बन खिलती !
पीड़ा मन की ही दे जाती 
खुशियों का इक महा समुन्दर,
कृष्ण बांसुरी की धुन बनते 
जब विषाद में घिरे धुरन्धर !

बहुत बढ़िया
जवाब देंहटाएंबहुत खूब कहा , अंतस में सबछिपा
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