एक छुअन है अनजानी सी
शब्दों में कैसे ढल पाए
मधुर रागिनी तू जो गाए,
होने से बनने के मध्य
गागर दूर छिटक ही जाए !
एक छुअन है अनजानी सी
प्राणों को जो सहला जाती,
एक मिलन है अति अनूठा
हर लेता हर व्यथा विरह की !
मदिर चांदनी टप-टप टपके
कोमलतम है उसका गात,
तके श्याम बाट राधा की
भूली कैसे वह यह बात !
जिस पल तकती वही वही है
मौन रचे जाता है गीत,
ज्यों प्रकाश ही ओढ़ आवरण
बहता चहूँ दिशि बनकर प्रीत !
जाने कितने करे इशारे
अपनी ओर लिए जाता है,
पल भर काल न तिल भर दूरी
अपनी खबर दिए जाता है !
प्रेम और विरह की अनूठी भावमय रचना ... प्राकृति और सोंदर्य का बोध कराती ...
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार दिगम्बर जी !
हटाएंआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 23-02-2017 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2597 में दिया जाएगा |
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
बहुत बहुत आभार दिलबाग जी !
हटाएंआपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन मौलाना अबुल कलाम आजाद जी की 59वीं पुण्यतिथि और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शुक्रवार 24 फरवरी 2017 को लिंक की गई है.... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार रश्मि जी !
हटाएंभावमय रचना एक एक शब्द रग में समाता हुआ..!!
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