ओ रे मन !
किस उलझन में खोये रहते
किस पीड़ा को पल-पल सहते,
सुनो गीत जो नभचर गाते
निशदिन मधुर राग बहता है !
निशदिन मधुर राग बहता है !
किस शून्य को भरे हो भीतर
कण-कण में अनहत बजता है,
सपनों ने दिन-रात जलाया
खुली आंख ही वह मिलता है !
एक विशाल वितान सजाया
रंगमंच पर नट अनेक हैं,
सुख-दुःख के झीने पर्दे में
सदा एकरस कुछ रिसता है !
पाँव रुके उर की जड़ता से
चाह अधीर करे धड़कन को,
दोनों ही के पार गया जो
हरसिंगार चुना करता है !
मन की उड़ान को परखना बेहद कठिन है. सु-:दुःख तो आते-जाते रहेंगे, पर जिसके ह्रदय अमृत कण बसता हो. उसकी बात ही जुदा है.
जवाब देंहटाएंअंतर में अमृत की खबर जिसको मिल गयी वह तो जगत में लीला करने के लिए ही रहता है
हटाएंआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 23-03-2017 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2609 में दिया जाएगा
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
बहुत बहुत आभार दिलबाग जी !
हटाएंआपकी ब्लॉग पोस्ट को आज की ब्लॉग बुलेटिन प्रस्तुति विश्व जल दिवस और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। एक बार आकर हमारा मान जरूर बढ़ाएँ। सादर ... अभिनन्दन।।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार हर्षवर्धन जी !
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