रंग चुरा के कुछ टेसू के
सुरभि भरे निज आंचल में फिर
गीत गा रही पवन बसंती,
नासापुट की खत्म प्रतीक्षा
भीगा उर फागुन की मस्ती !
कंचन झूमा, खिला पलाश
बौराया आम्रवन सारा,
आड़ू, नींबू सभी महकते
कामदेव ने किया इशारा !
एक तरफ झरते हैं पत्ते
नव कोमल पल्लव उग आते,
जीवन-मृत्यु संग घट रहे
महुआ चूता भंवरे गाते !
कुसुमित प्रमुदित खिली वाटिका
ऋतुराज रचता रंगोली,
रंग चुरा के कुछ टेसू के
क्यों न खेलें पावन होली !
होली की शुभकामनाएं । सुन्दर रचना।
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार सुशील जी ! आपको भी रंगों के पर्व की शुभकामनायें !
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 09-03-2017 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2603 में दिया जाएगा
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
स्वागत व बहुत बहुत आभार दिलबाग जी !
हटाएंगहन अर्थ संजोये बहुत सुन्दर शब्द चित्र...होली की अग्रिम शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार कैलाश जी !
हटाएंsundar rachna holi ki agrim shubhkamnayen
जवाब देंहटाएंसादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (10 -3-2020 ) को " होली बहुत उदास " (चर्चाअंक -3636 ) पर भी होगी
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये। आप भी सादर आमंत्रित हैं।
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कामिनी सिन्हा