आँसू बनकर वही झर गया
दुःख की नगरी में जा पहुँचे,
निकले थे सुख की तलाश में,
अंधकार से भरे नयन हैं
खोल दिये जब भी प्रकाश में !
फूल जान जिसे कंठ लगाया,
काँटे बनकर वही बिँध गया,
अधरों पर जो मिलन गीत था
आँसू बनकर वही झर गया !
तलविहीन कूआं था कोई
किया समर्पित हृदय जिस द्वार,
जहाँ उड़ेला भाव प्रीत का
पाषाण की निकली दीवार !
स्वप्न भरे थे जिस अंतर में,
सूना सा वह बना खंडहर
बात बिगड़ती बनते-बनते,
दिल में पीड़ा बहे निरंतर !