सोमवार, मई 22

लहरें उठतीं अम्बर छूने


लहरें उठतीं अम्बर छूने


जग पल-पल रूप बदलता है 
कैसे नयनों में थिर होगा,
लहरें उठतीं अम्बर छूने
गिर जातीं सागर फिर होगा !

खो जाता ज्यों भोर  सितारा 
अस्त हो रहे प्राणी ऐसे, 
दृश्य बदलता पलक झपकते  
दुनिया रंगमंच हो जैसे !

विस्मयकारी जग का मालिक 
स्वयं छुपा है पट के पीछे,
अकुलाते यूँ व्याकुल प्राणी  
अभिनय को सत्य मान बैठे !

जब वही रूप धर कर आया 
फिर कौन यहाँ किससे आगे,
नन्हा सा कीट भी उसका है 
ब्रह्मा भी भज उसको जागे ! 

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