गाना होगा अनगाया गीत
गंध भी प्रतीक्षा करती है
उन नासापुटों की, जो उसे सराहें
प्रसाद भी प्रतीक्षा करता है
उन हाथों की, जो उसे स्वीकार लें
जो मिला उसे बांटना होगा
होने को आये जो हो जाना होगा
गाना होगा अनगाया गीत
लुटाना होगा वह कोष भीतर छुपा
पलकों में बंद ख्वाबों को,
रात्रि का अँधकार नहीं सुबह का उजाला चाहिए
अंतर में भरी नर्माहट को शब्दों का सहारा चाहिए
गर्माहट जो सर्दियों की धूप गयी थी भर
अलस जो भर गयी तपती दोपहर,
उन्हें उड़ेंलना होगा
बचपन में मिले सारे दुलार को
किस्सों में सुने परी के प्यार को
चाँद पर चरखा कातती बुढ़िया
रोती-हँसती सी जापानी गुड़िया
देख-देख कर जो मुस्कान की कैद हृदय में
उसे बिखराना होगा
बारिश की पहली-पहली बौछार में
भीगने का वह सहज आनंद
हृदय में लिए नहीं जाना होगा
इस जग ने कितना-कितना भर दिया है
मनस को उजागर कर दिया है
पिता की कहानियों का वह जादूगर
जो उगाता था सोने के पेड़ और चाँदी के फल
जीवन में पाए अनायास ही वे अमोल पल
अंतहीन वक्त की कोरी चादर पर
कुछ अमोल बूटे काढ़ने हैं
राह दिखाएँ भटके हुओं को
ऐसे कई और दीपक बालने हैं !
बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार अंजना जी !
हटाएंनमस्ते ,आपकी लिखी यह रचना "पाँच लिंकों का आनंद "http://halchalwith5links.blogspot.in के 727 वें अंक (गुरूवार 13 -07 -2017 ) में प्रकाशन हेतु लिंक की गयी है । विमर्श में शामिल होने के लिए अवश्य आइयेगा,आप सादर आमंत्रित हैं। सधन्यवाद।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार रवीन्द्र जी !
हटाएंबहुत सुन्दर.....
जवाब देंहटाएंसुन्दर बिन गाया गीत.
जवाब देंहटाएंवाह सुन्दर।
जवाब देंहटाएंसुधा जी, विनोद जी और सुशील जी, आप सभी का स्वागत व हृदय से आभार !
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